नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेश से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को स्पेशल इन्क्लूजन रजिस्टर (एसआईआर) में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि इन समुदायों ने 2014 से पहले भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था, लेकिन वर्षों से उनकी अर्जी लंबित है।

याचिकाकर्ता का पक्ष
एनजीओ ‘आत्मदीप’ की ओर से दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि याचिकाकर्ता धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने के बाद भारत आए थे। इसलिए उनकी स्थिति को देखते हुए नागरिकता प्रदान की जानी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि लंबी देरी के चलते इन परिवारों का जीवन अनिश्चितता में फंसा हुआ है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केवल जातीय या धार्मिक पहचान के आधार पर अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि “डिम्ड सिटिज़नशिप के सिद्धांत को लागू करने पर विचार करना होगा। अधिकार तो मौजूद हैं, लेकिन हर मामले की जांच तथ्यों के आधार पर की जाएगी।”

करुणा नंदी की दलील
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा कि अधिकांश आवेदक हिंदू हैं, हालांकि बौद्ध और ईसाई भी शामिल हैं। उन्होंने तर्क दिया कि 2014 से पहले भारत आने के कारण उन्हें नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का लाभ नहीं मिलता।
नंदी ने अदालत को याद दिलाया कि बासुदेव जजमेंट में दिए गए प्रावधानों को अंतरिम रूप से याचिकाकर्ताओं के एसआईआर में शामिल किए जाने पर लागू किया जाना चाहिए।