सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाक मामले की सुनवाई के दौरान बच्चों के हितों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि जब वैवाहिक विवाद तलाक तक पहुंच जाता है, तब भी भाई-बहनों को अलग नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय के अनुसार, बच्चों का साथ में रहना उनके मानसिक और सामाजिक विकास के लिए बेहद आवश्यक है।

मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने यह सवाल उठाया कि माता-पिता की आपसी अनबन का खामियाजा आखिर भाई-बहन क्यों भुगतें? कोर्ट ने कहा कि “दंपती के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन बच्चे निर्दोष होते हैं। उन्हें साथ रहने का अधिकार मिलना चाहिए।”

क्या है मामला?

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ एक ऐसे दंपती के मामले की सुनवाई कर रही थी जो पिछले कई वर्षों से अलग रह रहा है। इस दौरान अदालत को बताया गया कि दंपती के दो नाबालिग बच्चे भी बंट चुके हैं—पुत्र पिता के साथ और पुत्री मां के साथ रह रही है।

यह जानकारी सुनकर पीठ ने अफसोस जताते हुए कहा कि छोटे भाई-बहनों का अलग रहना “बेहद दुखद” है। न्यायालय ने कहा कि बच्चों ने कोई गलती नहीं की है, इसलिए उन्हें इस विभाजन की सजा नहीं मिलनी चाहिए।

मीडिएशन जारी, कोर्ट ने सुनवाई टाली

दंपती की ओर से पेश वकीलों ने बताया कि मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट मीडिएशन सेंटर में विचाराधीन है। इस पर अदालत ने मीडिएशन की प्रक्रिया पूरी होने तक अगली सुनवाई टाल दी।

हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि समझौता नहीं होता और दंपती अलग होने का निर्णय लेते हैं, तब भी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दोनों बच्चे साथ रहें। कोर्ट ने कहा कि भले ही आगे चलकर बच्चों की देखभाल माता द्वारा की जाए या पिता द्वारा, लेकिन भाई-बहनों को अलग नहीं किया जाना चाहिए।