भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राज्यों को अवमानना की चेतावनी

दिल्ली। भ्रामक विज्ञापनों और चिकित्सा दावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। शीर्ष कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों और चिकित्सा दावों के खिलाफ कार्रवाई में फेल साबित होने वाले राज्यों को शीर्ष कोर्ट ने फटकार लगाई है। साथ ही ऐसे राज्यों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी भी दी है।

 इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष आरवी अशोकन को बड़ी राहत भी दी है। अदालत  ने साक्षात्कार में शीर्ष अदालत पर टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को बंद कर दिया है। पीठ ने पूर्व आईएमए अध्यक्ष के हलफनामे के साथ दी गई माफी को स्वीकार कर लिया और निर्णय लिया कि आगे कोई कार्रवाई आवश्यक नहीं है।

जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, हम यह स्पष्ट करते हैं कि किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की ओर से गैर-अनुपालन पाए जाने पर संबंधित राज्यों के खिलाफ अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्यवाही शुरू करनी पड़ सकती है।

पीठ आधुनिक (एलोपैथिक) चिकित्सा को टारगेट करने वाले भ्रामक दावों और विज्ञापनों के संबंध में भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पिछले वर्ष मई में शीर्ष अदालत ने सभी राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे अपने लाइसेंसिंग अथॉरिटी के हलफनामे दाखिल करें, जिसमें ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का उल्लंघन करने वाले भ्रामक विज्ञापनों के संबंध में 2018 से उनके द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में बताया जाए। 30 जुलाई, 2024 को अदालत ने सभी राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे कानून के अनुपालन के लिए दंड और निवारक लगाने में अपनी निष्क्रियता के बारे में बताएं। न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 की धारा 3 और 4 के तहत उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन ही एकमात्र उपाय है। हालांकि राज्यों के हलफनामों से पता चलता है कि प्रवर्तन में कमी है और कोई अभियोजन नहीं चलाया जा रहा है।

अपराधियों की पहचान को चुनौतीपूर्ण बताने वाला स्पष्टीकरण अजीबोगरीब
जस्टिस ओका ने कहा कि दिल्ली सरकार का यह स्पष्टीकरण कि अपराधियों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण है, अजीबोगरीब है। गोवा के वकील को संबोधित करते हुए जस्टिस ओका ने पूछा कि प्राप्त शिकायतों के आधार पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। इसी तरह कोर्ट ने कर्नाटक से 25 अज्ञात अपराधियों की पहचान करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में स्पष्टीकरण न देने पर सवाल किया। उन्होंने कहा कि पांडिचेरी में शिकायतें होने के बावजूद कार्रवाई नहीं की जाती है। उन्होंने कहा, अगर हमें राज्यों की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया मिलती है तो हम अवमानना की कार्रवाई करेंगे।

 अनुपालन शेड्यूल निर्धारित किया
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अनुपालन शेड्यूल भी निर्धारित किया। पीठ ने कहा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोवा, गुजरात और जम्मू और कश्मीर की ओर से अनुपालन की समीक्षा 10 फरवरी को की जाएगी। अतिरिक्त हलफनामे, यदि कोई हों, 3 फरवरी तक प्रस्तुत किए जाने चाहिए। हलफनामों की प्रतियां न्याय मित्र को दी जानी चाहिए जो रिपोर्ट संकलित और प्रस्तुत कर सकते हैं। झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, पांडिचेरी और पंजाब के अनुपालन की समीक्षा 24 फरवरी की जाएगी। यदि कोई और हलफनामा हो तो उसे 17 फरवरी तक दाखिल किया जाना चाहिए। शेष राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के अनुपालन पर 17 मार्च को विचार किया जाएगा। हलफनामे 3 मार्च तक दाखिल किए जाने चाहिए।

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