राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की एक संयुक्त टीम कथित तौर पर 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत ला रही है, क्योंकि वह एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के 16 साल बाद भी संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने प्रत्यर्पण को रोकने में विफल रहा है.
माना जाता है कि तहव्वुर राणा डेविड कोलमैन हेडली के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है, जो 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड में से एक है, जिसमें 166 लोग मारे गए थे और भारत की वित्तीय राजधानी को लगभग तीन दिनों तक घेरे में रखा गया था.
कई रिपोर्टों में उद्धृत सूत्रों के अनुसार, भारत आने पर, उसे कड़ी सुरक्षा के बीच तिहाड़ जेल में रखा जाएगा.उसके खिलाफ मुकदमे करने की तैयारी की जा रही है.
तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण एक बड़ी उपलब्धि
बीजेपी के सांसद और यूपी पुलिस के पूर्व डीजीपी बृजलाल 26/11 हमले कर वक्थ एडीजी लॉ आर्डर यूपी पुलिस और एटीएस चीफ थे. उन्होंने कहा कि तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण एक बड़ी उपलब्धि है
उन्होंने कहा कि 26/11/2008 को हुए मुंबई हमले से करीब 7 महीने पहले फरवरी 2008 में यूपी एटीएस ने मुंबई के गोरेगांव और बिहार के मोतिहारी से एक-एक आतंकियों को गिरफ्तार किया था और उनसे मिली जानकारी कागजात के आधार पर मैंने उस वक्त मुंबई पुलिस के बड़े अधिकारी को कहा था कि आतंकवादी मुंबई के लिए कुछ बड़ा प्लान कर रहे हैं.
जिन-जिन लोकेशन पर 26-11 का हमला हुआ, ताज होटल, हाजी अली, मंत्रालय, चवार्ड हाउस जैसे स्पेसिफिक लोकेशन की जानकारी हमने 7 महीने पहले दे दी थी, उस वक्त अगर मुंबई पुलिस गंभीरता से कार्रवाई करती तो 26-11 हमला नहीं होता.
कांग्रेस ने जानबूझकर तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण में देरी की
उन्होंने कहा कि मैं उन अधिकारियों का नाम लेना नहीं चाहूंगा यह उचित नहीं होगा, लेकिन उस वक्त महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने कहा कि 26-11 हमले को भारत में भगवा आतंकवाद से जोड़कर पाकिस्तान को क्लीन चिट दी जाती रही है.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जानबूझकर तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण में देरी की है ताकि सच्चाई दबी रहे. नरेंद्र मोदी के प्रयासों से यह प्रत्यर्पण हुआ है. तहव्वुर राणा से जब पूछताछ होगी तो उनके चेहरे बेनकाब होंगे, जिन्होंने 2611 के समय आतंकवादियों की मदद की थी.
उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के वक्त गृहमंत्री रहे सुशील शिंदे ने एक आईपीएस पर रिपोर्ट बदलने का दबाव बनाया, अधिकारी ने बात नहीं मानी तो उन्हें उनके कैडर में वापस भेज दिया गया.