सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिव्यांग व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के लिए विशेष कानून की आवश्यकता पर जोर दिया। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सुझाव दिया कि ऐसे कानून पर विचार किया जाए, जिसमें दिव्यांग या दुर्लभ अनुवांशिक रोग से पीड़ित लोगों का मजाक उड़ाना या अपमान करना अपराध माना जाए, ठीक उसी तरह जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम में निर्दिष्ट है।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने केंद्र से पूछा कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम जैसे कड़े प्रावधान दिव्यांगों के लिए क्यों नहीं लागू किए जा सकते। बेंच ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम जातिसूचक टिप्पणियों, भेदभाव और अपमान को गैर-जमानती अपराध बनाता है, इसी तरह दिव्यांगों के अपमान को भी अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
ऑनलाइन अवैध और आपत्तिजनक सामग्री पर नियंत्रण की मांग
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से कहा कि किसी की गरिमा का मजाक उड़ाना हास्य का हिस्सा नहीं हो सकता। बेंच ने इस अवसर पर यह भी कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री पर निगरानी रखने के लिए एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था की स्थापना होनी चाहिए।
मंत्रालय को दिशा-निर्देश सार्वजनिक करने का आदेश
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि दिव्यांगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रालय से कहा कि इन्हें सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया जाए। मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद तय की गई है।
सोशल मीडिया पर किए गए मजाक के मामले में निर्देश
सुप्रीम कोर्ट एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संगठन स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) जैसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित लोगों की सहायता करता है। याचिका में 'इंडियाज गॉट टैलेंट' के होस्ट समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परविंदर सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर द्वारा किए गए मजाक को चुनौती दी गई थी।
बेंच ने संबंधित कॉमेडियनों को भविष्य में सतर्क रहने और माह में दो कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियों को साझा किया जाए। इसका उद्देश्य उनके उपचार के लिए फंड जुटाना है। अदालत ने इसे सामाजिक दंड करार दिया और अन्य संभावित सजाओं से राहत प्रदान की।