अमेरिका से डिपोर्ट लोगों की आपबीती ने डंकी रूट के काले सच को उजागर कर दिया है। इसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, लेकिन पीड़ित अवैध एजेंटों के खिलाफ शिकायत करने से कतरा रहे हैं।
डिपोर्ट किए गए लोगों ने बताया कि एजेंट विदेश भेजने से पहले ही उनसे खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं। इन कागजों पर लिखा होता है कि यदि कोई अनहोनी होती है, तो वे इसके जिम्मेदार नहीं होंगे।
विदेश जाने की चाह में युवा बिना सोचे-समझे इन पर हस्ताक्षर भी कर देते हैं, और यही उनकी कानूनी लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा बनती है। स्थानीय एजेंट अकेले इस गोरखधंधे में शामिल नहीं होते, बल्कि उनका एक बड़ा नेटवर्क होता है, जो गांव से लेकर अमेरिका तक फैला होता है।
इस नेटवर्क के कारण एजेंटों के खिलाफ शिकायत करना और भी मुश्किल हो जाता है। डंकी रूट के माध्यम से विदेश जाने वाले युवा एजेंटों के जाल में फंस जाते हैं। वे न सिर्फ आर्थिक रूप से लूटे जाते हैं, बल्कि कानूनी कार्रवाई से भी डरते हैं। इसके चलते एजेंटों का हौसला और बढ़ता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील परमिंदर सिंह सेठी के अनुसार, एजेंटों के खिलाफ शिकायत न करने के कई कारण हैं। एजेंट मोटी रकम गैरकानूनी तरीके से लेते हैं, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता। वे कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए सारे सबूत जुटाकर रखते हैं। इसके अलावा, खाली कागजों पर हस्ताक्षर करवाने के कारण पीड़ित कानूनी लड़ाई से डरते हैं।
लंबी कानूनी प्रक्रिया और समझौता
अगर कोई शिकायत करता भी है, तो अदालतों में लंबे केस चलते हैं। कई बार पीड़ित को ही आरोपी बना दिया जाता है, क्योकि वह भी गैरकानूनी तरीके से विदेश गया होता है। इसके चलते न्याय मिलने की उम्मीद कम हो जाती है। यही नहीं, 95 प्रतिशत मामलों में एजेंट पुलिस के साथ समझौता करके बच जाते हैं।