सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह पश्चिम बंगाल के उन निवासियों को अस्थायी तौर पर वापस लाए, जिन्हें विदेशी होने के शक में बांग्लादेश भेज दिया गया था, और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दें। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति खुद को भारतीय नागरिक बताता है, तो वह अपने दस्तावेज़ों के साथ अपनी बात अधिकारियों के सामने रख सकता है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि निर्वासित व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किए गए जन्म प्रमाण पत्र, पारिवारिक जमीन के दस्तावेज़ और अन्य कागजात साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जा सकते हैं। अदालत ने कहा कि सरकार इन दस्तावेज़ों की जांच कर सकती है और इसके लिए लोगों को अस्थायी रूप से वापस बुलाया जा सकता है।
केंद्र पर देर से अपील का आरोप
याचिकाकर्ता भोदू शेख के वकील संजय हेगड़े ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने में लगभग एक महीने की देरी की। यह मामला लंबित रह गया क्योंकि आवेदन में कुछ खामियां थीं। वकील ने यह भी कहा कि जिन्हें सीमा पार भेजा गया, वे वास्तव में भारतीय नागरिक हैं।
अपर्याप्त जांच का हवाला
सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा कि रिकॉर्ड पर कई सामग्री उपलब्ध हैं, जो संभावित सबूत के रूप में देखी जा सकती हैं। उन्होंने पूछा कि यदि पहले पर्याप्त जांच नहीं हुई थी, तो केंद्र सरकार अस्थायी तौर पर उन्हें वापस क्यों नहीं बुलाती और उनके दस्तावेज़ों की सत्यता क्यों नहीं जांचती।
घुसपैठियों और नागरिकों में अंतर
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में आया है, तो उसे वापस भेजना उचित है। लेकिन यदि कोई साबित कर सकता है कि वह भारत में जन्मा और पला-बढ़ा है और उसके पास इसके प्रमाण हैं, तो उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार तक का समय देते हुए केंद्र को सुझाव दिया कि वह अस्थायी उपाय के तहत निर्वासित लोगों को बुलाकर उनके दस्तावेज़ सत्यापित करवा सकती है।
हाईकोर्ट के आदेश से शुरू हुआ मामला
यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के सितंबर 2025 के आदेश से शुरू हुआ। हाईकोर्ट ने कहा था कि निर्वासित लोगों की नागरिकता का मामला विस्तार से जांच का विषय है और उन्हें चार सप्ताह के भीतर वापस लाया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि नागरिकता संबंधी दस्तावेज़ और सबूतों के आधार पर ही आगे निर्णय लिया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता का दावा
भोदू शेख ने अपनी बेटी, दामाद और पोते की अवैध हिरासत और निर्वासन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि परिवार पश्चिम बंगाल का स्थायी निवासी है और उनके बेटी-दामाद भारतीय नागरिक हैं, जो नौकरी के सिलसिले में दिल्ली गए थे। उन्हें पहचान जांच अभियान के दौरान हिरासत में लिया गया और 26 जून 2025 को निर्वासित कर दिया गया, जबकि उनकी बेटी गर्भवती थी।
अधिकारियों का पक्ष
पुलिस और अधिकारियों का दावा है कि हिरासत में लिए गए लोग बांग्लादेशी नागरिक होने की बात मान चुके थे और अपने आधार, राशन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र पेश नहीं कर पाए। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस में दिए गए बयानों को दबाव में लिया गया माना जा सकता है और इसी कारण उन्हें चार हफ्ते में वापस बुलाने का आदेश दिया गया।