नई दिल्ली। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को उस मामले पर सुनवाई की, जिसमें हाल ही में CJI बी.आर. गवई पर जूता फेंका गया था। अदालत ने इस घटना को गंभीर बताते हुए कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए उचित दिशानिर्देश तैयार किए जाने पर विचार किया जाएगा।
पीठ ने टिप्पणी की कि अदालत में नारे लगाना या जूते फेंकना न्यायालय की अवमानना के दायरे में आता है, लेकिन कार्रवाई करना संबंधित जज के विवेक पर निर्भर करता है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाओं में अवमानना नोटिस जारी करने से आरोपी को अनावश्यक महत्व मिल सकता है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष विकास सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अगर ऐसे मामलों में सख्त कदम नहीं उठाए गए तो न्यायिक संस्था की गरिमा को नुकसान होगा और लोग अदालत का मजाक उड़ाने लगेंगे। उन्होंने मांग की कि आरोपी वकील से माफी मंगवाई जाए या फिर उसे जेल भेजा जाए।
कोर्ट ने इस पर कहा कि इस प्रकरण को स्वाभाविक रूप से शांत होने दिया जाए और बार एसोसिएशन अपनी ओर से उचित कार्रवाई करे।
बार एसोसिएशन ने रद्द की आरोपी वकील की सदस्यता
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस घटना को गंभीर मानते हुए आरोपी वकील राकेश किशोर की सदस्यता रद्द कर दी थी। साथ ही, उसके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की मांग करते हुए याचिका भी दाखिल की गई थी।
यह घटना 6 अक्टूबर 2025 को सुनवाई के दौरान हुई थी, जब राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया। उस समय CJI गवई ने पूरी स्थिति में संयम बनाए रखा।
‘मुझे अपने कदम पर कोई अफसोस नहीं’ — आरोपी वकील
घटना के बाद आरोपी वकील राकेश किशोर ने मीडिया से कहा कि उन्हें अपने कदम पर कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने यह कदम “भगवान के निर्देश” पर उठाया और “सनातन धर्म के अपमान” के विरोध में ऐसा किया।
इस विवादास्पद बयान ने न्यायिक हलकों में आक्रोश पैदा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई में दिशानिर्देशों को लेकर आगे की रूपरेखा तय कर सकता है।