सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाईकोर्ट में राजनीतिक कारणों के चलते लोक अभियोजकों की नियुक्ति पर नाराजगी जाहिर की है। जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने इन नियुक्तियों को लेकर कहा है कि अभियोजकों की नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावाद नहीं होना चाहिए। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक अपील में सरकारी अभियोजक की ओर से दी गई असंतोषजनक सहायता को देखते हुए शीर्ष कोर्ट ने ये टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि यह निर्णय सभी राज्य सरकारों के लिए एक संदेश है कि संबंधित हाईकोर्ट में एजीपी और एपीपी पर किसी व्यक्ति को सिर्फ उसकी योग्यता के आधार पर नियुक्त किया जाना चाहिए। राज्य सरकार का यह कर्तव्य है कि वह पात्र व्यक्ति की योग्यता का पता लगाए कि वह कानून में कितना कुशल है। उसकी समग्र पृष्ठभूमि, उसकी ईमानदारी भी देखी जानी चाहिए।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक अपील में सरकारी अभियोजक की ओर से दी गई असंतोषजनक सहायता को देखते हुए पीठ ने ये टिप्पणियां कीं। लोक अभियोजक के असंतोषजनक होने की वजह से आरोपी को अवैध सजा सुनाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि मृतक के पिता की पुनरीक्षण याचिका में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के बरी किए जाने के फैसले को पलट दिया। यह अस्वीकार्य है क्योंकि पुनरीक्षण याचिका में बरी किए जाने के फैसले को पलटा नहीं जा सकता।
हैरानी की बात, लोक अभियोजक ने आरोपी के लिए मृत्युदंड की मांग की
पीठ ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि हाईकोर्ट के लोक अभियोजक ने कानूनी रूप से अनुचित होने की ओर ध्यान दिलाने के बजाय आरोपी को मृत्युदंड दिए जाने की मांग की जबकि राज्य ने बरी किए जाने के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की थी। पीठ ने सभी हाईकोर्ट में लोक अभियोजकों के ऐसे स्तर पर दुख जताया।
ये एक सार्वजनिक पद उसके कुछ दायित्व व विशेषाधिकार
शीर्ष अदालत ने कहा कि लोक अभियोजक एक सार्वजनिक पद धारण करता है। उसके पद के साथ कुछ पेशेवर, आधिकारिक दायित्व और विशेषाधिकार जुड़े हुए हैं। अभियोजक जांच एजेंसी का हिस्सा नहीं है बल्कि एक स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण है। लोक अभियोजक को उच्च योग्यता, निष्पक्ष व्यक्ति होना चाहिए क्योंकि आपराधिक न्याय का प्रशासन काफी हद तक उसी पर निर्भर करता है। पीठ ने कहा कि अभियोजक का कर्तव्य न्यायालय को उचित निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद करना है। उसे अभियुक्त के दोष या निर्दोषता के निर्धारण के लिए प्रासंगिक साक्ष्य को दबाना या अदालत से छिपाना नहीं चाहिए।
क्या है मामला
वर्तमान मामले में, न्यायालय ने माना कि सरकारी अभियोजकों द्वारा की गई गलतियों के लिए राज्य सरकार को उत्तरदायी ठहराया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य को उन तीन अपीलकर्ताओं को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा देने को कहा, जिन्हें गलत तरीके से हत्या में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।