संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ समारोह के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बहुपक्षवाद के सामने खड़ी चुनौतियों और आतंकवाद के प्रति अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने वैश्विक दक्षिण के बढ़ते संकट और संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों को भी रेखांकित किया।
आतंकवाद के प्रति प्रतिक्रिया पर कटाक्ष
जयशंकर ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की आतंकवाद से निपटने में विफलता और अपराधियों को जवाबदेह ठहराने में कमी बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता को प्रभावित कर रही है। उन्होंने पूछा कि जब सुरक्षा परिषद का कोई सदस्य संगठन का बचाव करता है, जो पहलगाम जैसे भयानक आतंकवादी हमलों की जिम्मेदारी लेता है, तो इससे बहुपक्षवाद की सार्थकता पर क्या असर पड़ता है।
आतंकवादियों और पीड़ितों की तुलना पर सवाल
विदेश मंत्री ने वैश्विक रणनीति के नाम पर आतंकवादियों और उनके पीड़ितों को समान मानने के दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि जब आतंकवादियों को प्रतिबंध प्रक्रियाओं से बचाया जाता है, तो इससे अंतर्राष्ट्रीय ईमानदारी और न्याय की गंभीरता पर संकट पैदा होता है।
पहलगाम हमला और भारतीय प्रतिक्रिया
जयशंकर की टिप्पणियाँ 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले से जुड़ी हैं, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की हत्या की थी। इस हमले के जवाब में भारतीय सशस्त्र बलों ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाया गया। भारत ने बाद में पाकिस्तान की बढ़ती आक्रामकता को भी विफल कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर विचार
जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता केवल सुरक्षा के मामलों में ही नहीं, बल्कि विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति में भी परखी जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर शांति बनाए रखना केवल दिखावटी बनकर रह गया, तो विकास की चुनौतियाँ और गंभीर हो जाएंगी।
आशावादी संदेश
हालांकि उन्होंने आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया, जयशंकर ने आशा व्यक्त करते हुए कहा, "इस उल्लेखनीय वर्षगांठ पर हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ हों, बहुपक्षवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूत रहनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र का समर्थन जारी रहना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को नवीनीकृत किया जाना चाहिए।"