जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में कार्यसमिति की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. बैठक में देश में बढ़ रही सांप्रदायिकता और मुसलमानों के साथ भेदभाव, समान नागरिक संहिता, पूजा अधिनियम के साथ-साथ फिलिस्तीन-इजराइल युद्ध विराम समझौते जैसे कई अन्य ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की गई. इस दौरान मौलाना मदनी ने अपने भाषण में वक्फ संशोधन विधेयक को मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया.

उन्होंने कहा कि वक्फ विधेयक को सभी संवैधानिक तरीकों और मुसलमानों के अधिकारों की अनदेखी करते हुए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के माध्यम से स्पीकर के समक्ष पेश किया गया. इसे आज केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी के लिए संसद में पेश किया गया है. वक्फ संशोधन विधेयक पर आपत्ति जताते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि व्यक्त की जा रही आशंकाएं सही साबित हुई हैं. इन संशोधनों के जरिए केंद्र सरकार वक्फ संपत्तियों की स्थिति और प्रकृति को बदलना चाहती है. ताकि उन पर कब्जा करना आसान हो जाए और उनका मुस्लिम वक्फ का दर्जा खत्म हो जाए.

हम तानाशाही कानून को स्वीकार नहीं कर सकते- मदनी

मौलाना मदनी ने बताया कि पहले धारा 3 में वक्फ बोर्ड यह तय करता था कि कोई वक्फ वैध है या नहीं, अब मौजूदा संशोधन में यह अधिकार कलेक्टर को दे दिया गया है. अब मौजूदा 14 संशोधनों में जो आज संसद में पेश किए गए हैं, नए संशोधन में कलेक्टर और एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी को जांच का अधिकार दिया गया है, जो तय करेगा कि यह संपत्ति सरकारी है या वक्फ की जमीन है और रिपोर्ट देगा. जब तक रिपोर्ट नहीं मिलती, उस दिन से वह संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी, जैसे अगर पचास साल तक रिपोर्ट नहीं मिलती, तो भी वह संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी.

उन्होंने आगे कहा कि यूजर वक्फ यानी वह वक्फ संपत्ति जो रूप या उपयोग की नजर से वक्फ मानी गई है और प्राचीन काल से अदालतें उसका वक्फ तय करती आ रही हैं, वह स्वीकार्य है. लेकिन शर्त यह है कि उसमें कोई विवाद न हो और सरकार या उसकी किसी संस्था का उस पर कोई दावा न हो. मौलाना मदनी ने कहा कि मुसलमानों के कड़े विरोध के बाद वक्फ नियम में बदलाव किया गया. इसमें संशोधन तो किया गया है, लेकिन इसमें यह भी चतुराई से जोड़ दिया गया है कि सरकार अलग-अलग आधार पर दावा कर सकती है.

यानी मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा, खानकाह या इमाम आदि वक्फ संपत्तियों का दर्जा तो मान्य होगा. लेकिन जिन संपत्तियों पर पहले से ही कब्जा है या जिन पर कोई विवाद या मुकदमा चल रहा है. क्योंकि दिल्ली में 123 संपत्तियां हैं और उन पर इसी तरह के मामले चल रहे हैं, इसलिए वे वक्फ-बाय-यूजर नियम से बाहर होंगी. सरल शब्दों में कहें तो ऐसी वक्फ संपत्तियों पर मुसलमानों का दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि अन्य संशोधनों में भी इसी तरह की चालाकी अपनाई गई है, इसलिए हम इस तानाशाही कानून को स्वीकार नहीं कर सकते.

फिर लोकतंत्र का राग क्यों अलापा जा रहा है- मदनी

उन्होंने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद और सभी मुस्लिम संगठनों की राय और सलाह को नजरअंदाज करके और विपक्षी सदस्यों के सुझावों को खारिज करके विधेयक को मंजूरी देने की सिफारिश करना अलोकतांत्रिक है. यह मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है. उन्होंने पूछा कि अगर सरकार को तानाशाही और बल के जरिए ही चलाना है तो फिर लोकतंत्र का राग क्यों अलापा जा रहा है और संविधान की दुहाई क्यों दी जा रही है? मौलाना मदनी ने कहा कि यह दुखद तथ्य अब सामने आ गया है कि सरकार में शामिल जो दल खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, उन्होंने भी कायरता और स्वार्थ का परिचय दिया है.

उन्होंने मुसलमानों की चिंताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया और सरकार पर कोई दबाव नहीं डाला. अगर उन्होंने वाकई दबाव डाला होता तो संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट कुछ और होती. उन्होंने मौजूदा सरकार में शामिल धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को चेतावनी देते हुए कहा कि उनके पास अभी भी मौका है कि वे इस कानून को संसद में पारित होने से रोकें और इसका खुलकर विरोध करें. इन राजनीतिक दलों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी राजनीतिक सफलता के पीछे मुसलमान भी हैं.

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मौलाना मदनी ने कहा कि अगर खुदा न खास्ता यह कानून पारित होता है तो जमीयत उलमा-ए-हिंद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. जमीयत उलमा-ए-हिंद मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों और इंसाफ पसंद लोगों के साथ मिलकर वक्फ संपत्तियों को बचाने के लिए सभी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करेगी. मौलाना मदनी ने आगे कहा कि मुसलमानों द्वारा जो भी वक्फ किया गया है और जिस भी उद्देश्य के लिए किया गया है. यह संपत्ति अल्लाह के लिए दान है.