अगर सच्चे दिल से मेहनत की जाए तो इंसान को सफलता जरूर मिलती है. इस बात को भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में नए-नवेले अधिकारी बने लड़कों ने चरितार्थ कर दिया है. इस बार भारतीय सेना में कई ऐसे अधिकारी शामिल हुए हैं, जो बेहद गरीब परिवार से आते हैं, लेकिन अपने जज्बे और दृढ़ संकल्प से सफलता का परचम लहरा दिया है. उन्हीं में से एक हैं राजस्थान के कोटा के रहने वाले राहुल वर्मा. उनके पिता एक धोबी का काम करते हैं. इस्त्री की गड़गड़ाहट और जलते हुए कोयले की गंध के बीच बड़े हुए राहुल के सपने भी बड़े थे.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राहुल के परिवार की आजीविका उनके घर के एक छोटे से कोने में घूमती थी, जहां दिन में कपड़े प्रेस किए जाते थे और शाम को खाना पकाया और परोसा जाता था. ऐसे माहौल में राहुल ने पढ़ाई की, परीक्षाओं की तैयारी की और अब उनकी उस मेहनत और समर्पण ने उन्हें भारतीय सेना में शामिल करा दिया. राहुल कहते हैं ‘मेरे पिता मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं. उन्होंने हमेशा मुझे ऐसा प्रोफेशन चुनने के लिए कहा जो सम्मान वाला हो. वह अक्सर कहते हैं कि अब सिर्फ राजा का बेटा ही राजा नहीं बनता बल्कि कोई भी व्यक्ति जो कड़ी मेहनत करता है, वह शीर्ष पर पहुंच सकता है’.
एक बल्ब की रोशनी में करते थे पढ़ाई
अपने घर की सभी परेशानियों को भुलाकर राहुल घर के कोने में एक बल्ब की रोशनी में रात-रात भर पढ़ाई करते रहते थे, ताकि वो अपने पिता का सपना पूरा कर सकें. राहुल अब आधिकारिक रूप से भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हो गए हैं. उनकी कहानी समर्पण और दृढ़ता का उदाहरण है.
ऑफिसर्स मेस का रसोइया भी बना लेफ्टिनेंट
राहुल वर्मा की तरह ही रमन सक्सेना भी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बने हैं. उनकी कहानी भी काफी प्रेरणादायक है. आगरा के रहने वाले राहुल ने साल 2007 में होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद एक होटल में शेफ के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और रमन सेना में अधिकारी बन गए.
पिता ने किया सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित
रमन बताते हैं, ‘जब मैं एक होटल में काम कर रहा था, तब मेरे पिता ने मुझे सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित किया’. उसके बाद साल 2014 में वह नायब सूबेदार के रूप में सेना में भर्ती हुए. उनकी शुरुआती पोस्टिंग भारतीय सैन्य अकादमी में कैटरिंग इन-चार्ज के रूप में हुई. यहीं पर भारतीय सेना के अधिकारियों को खाना परोसते हुए उनके मन में भी अधिकारी बनने का ख्याल आया, जिसके बाद उन्होंने तैयारी शुरू कर दी. हालांकि अपने पहले दो प्रयासों में उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा.
उन्होंने बताया कि विशेष कमीशन अधिकारी (एससीओ) प्रवेश योजना के तहत जूनियर कमीशन अधिकारी 28 से 35 साल की उम्र के बीच कमीशन अधिकारी बन सकते हैं. वह भी 34 साल की उम्र में अपने तीसरे प्रयास में सफल हुए. वह अपनी सफलता के पीछे अपने पिता का अटूट समर्थन बताते हैं. उनके पिता भी सेना में अधिकारी थे.