नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कांग्रेस नेताओं के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि संघ को व्यक्तियों के समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसका पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं है। भागवत ने एक सवाल-जवाब सत्र में बताया कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी और आजादी के बाद भारत सरकार ने ऐसे संगठनों के लिए पंजीकरण को अनिवार्य नहीं किया है। उन्होंने कहा, “हम ‘बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स’ के रूप में वर्गीकृत हैं और एक मान्यता प्राप्त संगठन हैं।”
भागवत ने यह भी बताया कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को इसी रूप में मान्यता दी है, जिसके चलते संगठन को आयकर से छूट भी मिली हुई है। उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप में कहा, “हम पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया। अगर हम होते ही नहीं, तो सरकार ने किस पर प्रतिबंध लगाया?” उन्होंने जोड़ते हुए कहा कि कई चीजें हैं जो पंजीकृत नहीं होतीं, यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है।
संघ में जाति और धर्म की कोई पूछताछ नहीं
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ में किसी सदस्य की जाति या धर्म नहीं पूछा जाता। शाखा में आने वाले सभी लोग अपनी व्यक्तिगत पहचान घर पर छोड़कर आते हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम, ईसाई या किसी अन्य धर्म के लोग संघ में स्वागत योग्य हैं, लेकिन शाखा में सभी को “भारत माता के पुत्र” माना जाता है।
भगवा और तिरंगा दोनों का सम्मान
संघ प्रमुख ने बताया कि संघ हमेशा से राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का सम्मान करता आया है। उन्होंने कहा कि 1933 में राष्ट्रीय ध्वज तय करने वाली समिति ने भगवा रंग की सिफारिश की थी, लेकिन महात्मा गांधी ने तीन रंगों वाला तिरंगा चुना। भागवत ने कहा, “हमारा भगवा अपना है और तिरंगा हमारा राष्ट्रीय प्रतीक, दोनों में कोई टकराव नहीं है।”
पाकिस्तान के साथ संवाद में स्पष्ट रुख
पाकिस्तान के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा कि कभी-कभी पड़ोसी देश को वही भाषा समझानी पड़ती है जो वह समझे। उनका मानना है कि बार-बार प्रयास करना चाहिए ताकि पाकिस्तान एक शांतिप्रिय और सहयोगी पड़ोसी बने। उन्होंने कहा कि असली इच्छा दोनों देशों की प्रगति और क्षेत्र में शांति कायम करना है।