एक फैमिली कोर्ट से बार-बार तलाक मंजूर किए जाने के खिलाफ एक महिला की लंबी कानून लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में दस्तक देने पर सर्वोच्च अदालत ने इस एकाकी महिला के प्रति पूरी तरह से विचारशून्यता दिखाई जाने की बात कही है। जस्टिस सूर्यकांत और उज्जवल भुइयां की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि विवाह संबंधी विवादों के इतिहास में इससे पहले तलाक की कानूनी लड़ाई तीन दशकों तक नहीं खिंची है।
जबकि पीड़िता को इस अवधि में कोई गुजारा भत्ता नहीं दिया गया। सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में तलाक की पहली डिक्री मंजूर करते हुए कहा कि पति को तीन महीने के अंदर 30 लाख रुपये पर सात प्रतिशत के ब्याज के साथ 3 अगस्त, 2006 से अब तक के हिसाब से गुजारा भत्ता देना होगा।