कल्याण सिंह! एक राजनीतिक संत जिसने सत्ता से ऊपर श्रीराम को स्थान दिया, सीएम योगी ने व्यक्त किये अपने विचार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति के पटल को दशकों तक अपनी आभा से आलोकित करने वाले श्रद्धेय कल्याण सिंह जी नहीं रहे। अपार शोक की इस घड़ी में सोच रहा हूं कि अब जबकि वह हमारे बीच नहीं हैं तो उन्हेंं किस तरह याद किया जाए। उन्हें एक राजनीतिक संत कहूं, जिसे पद-प्रतिष्ठा का मोह छू तक न गया हो अथवा दृढ़ संकल्प की प्रतिमूर्त‍ि मानूं, जो लक्ष्य का संधान होने तक अर्जुन की भांति एकनिष्ठ भाव के साथ प्रयत्नशील रहे और अंतत: सफलता ने उनका वरण किया।

वास्तव में पांच दशक लंबा उनका सार्वजनिक जीवन इतना विविधतापूर्ण और संघर्षपूर्ण रहा है कि उसे कुछ विशेषणों के माध्यम से पूरा नहीं किया जा सकता। हां, इस विस्तृत समृद्ध राजनीतिक कालखंड में शुचिता, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, सख्त प्रशासक और कुशल नेतृत्व उनके व्यक्तित्व की पहचान बने रहे। भारतीय राजनीति के एक वृहद कालखंड में भारतरत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और कल्याण सिंह की तिकड़ी में जनमानस की आकांक्षाओं की छवि दृष्टिगोचर होती थी। मैं सौभाग्यशाली हूं कि इन तीनों महानुभावों का स्नेह मुझे मिला।

कल्याण सिंह जी, श्रीराम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेतृत्वकर्ताओं में थे। मंदिर के लिए सत्ता छोडऩे में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। उनका यह कथन प्रभु श्रीराम के प्रति उनकी आस्था की झलक है- ‘प्रभु श्रीराम में मुझे अगाध श्रद्धा है। अब मुझे जीवन में कुछ और नहीं चाहिए। राम जन्मभूमि पर मंदिर बनता हुआ देखने की इच्छा थी, जो अब पूरी हो गई। सत्ता तो छोटी चीज है, आती-जाती रहती है। मुझे सरकार जाने का न तब दुख था, न अब है। मैंने सरकार की परवाह कभी नहीं की। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा। अन्य जो भी उपाय हों, उन उपायों से स्थिति को नियंत्रण में किया जाए…। सत्ता में ऐसे लोग विरले ही मिलेंगे।

चूंकि मेरे दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ भी मंदिर आंदोलन के अग्रणी लोगों में थे, इसीलिए जब भी उनसे मुलाकात होती या उनका गोरखनाथ मंदिर आना होता तो मंदिर आंदोलन और अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण को लेकर पूज्य गुरुदेव से लंबी चर्चा होती थी। उनका अटूट विश्वास था कि प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर जन्मभूमि पर ही बनेगा। जब भी मंदिर आंदोलन पर चर्चा होती, वह कहते कि मंदिर निर्माण का काम मेरे जीवनकाल में ही शुरू होगा। प्रभु श्रीराम ने उनकी सुनी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय जनमानस की 500 वर्षाें की प्रतीक्षा को पूर्णता प्रदान करते हुए मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया। आज कोटि-कोटि आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य-दिव्य मंदिर का निर्माण अवधपुरी में सतत जारी है।

गोरक्षपीठ की तीन पीढिय़ां (ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और आज मैं स्वयं) मंदिर आंदोलन से जुड़ी रहीं। इस नाते पीठ से कल्याण सिंह जी का खास लगाव था। वह बड़े महाराज ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का बहुत सम्मान करते थे। यही कारण है कि जब भी गोरखपुर जाते, वे हमारे पूज्य गुरुजी से मिलने जरूर जाते थे। दोनों का एक ही सपना था कि उनके जीते जी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो।

समाज कल्याण सिंह जी को उनके युगांतरकारी निर्णयों, कर्तव्यनिष्ठा व शुचितापूर्ण जीवन के लिए सदियों तक स्मरण करते हुए प्रेरित होता रहेगा। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल, भारतीय जनता पार्टी परिवार के वरिष्ठ सदस्य व लोकप्रिय जननेता कल्याण सिंह जी का देहावसान संपूर्ण राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। मैं उनके निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अॢपत करता हूं। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और शोक-संतप्त स्वजना को दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करें।

(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं।)

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