कर्नाटक: जीत से कांग्रेस को मिलेगी संजीवनी, तो भाजपा के लिए खुलेंगे दक्षिण के नए द्वार

बहुप्रतीक्षित कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे शनिवार को घोषित हो जाएंगे। जनादेश राज्य के तीन मुख्य राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और जदएस की भविष्य की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे। नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर व्यापक प्रभाव डालेंगे। चुनाव कांग्रेस के जीवन-मरण, जदएस के अस्तित्व का सवाल है, जबकि नतीजे दक्षिण भारत में भाजपा के भविष्य की संभावना की तस्वीर पेश करेंगे।

ऊंट किस करवट बैठेगा, इस पर सभी दलों के अपने अपने तर्क हैं। मतदान के बाद आए एग्जिट पोल्स के अनुमानों ने तस्वीर को और उलझा दिया है। बीते 38 सालों से राज्य की परंपरा हर चुनाव में सत्ता पलटने की रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता इसी परंपरा को कायम रखेंगे या फिर इस बार बदलाव होगा।

केंद्रीय राजनीति पर असर
कांग्रेस की जीत से केंद्र में न सिर्फ भाजपा विरोधी मजबूत गठबंधन की संभावना को मजबूती मिलेगी, बल्कि कांग्रेस की विपक्ष की अगुवाई की दावेदारी भी मजबूत होगी। इसके उलट कांग्रेस अगर हारी तो विपक्षी एकता की मुहिम कमजोर पड़ने के साथ विपक्ष की अगुवाई करने संबंधी कांग्रेस का दावा कमजोर होगा। चूंकि इस समय कर्नाटक में लोकसभा की 28 में से 25 सीटें भाजपा के पास हैं, ऐसे में भाजपा की हार से इसका असर उसके लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन पर भी पड़ सकता है।

भाजपा जीती तो मजबूत होगी अजय की छवि
भाजपा अगर राज्य में सत्ता बरकरार रखती है तो पार्टी की अजेय छवि और मजबूत होगी। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर होगा और प्रधानमंत्री मोदी का दक्षिण के राज्यों में प्रभाव मजबूत होगा।

जीत से पार्टी के लिए दक्षिण के राज्यों में संभावनाओं के द्वार खुलेंगे और केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में उसकी विस्तार योजना को मजबूती मिलेगी। इसके उलट दक्षिण में अपना इकलौता किला खोने की स्थिति में दक्षिण भारत में पार्टी की विस्तार की योजना को धक्का लगेगा।

नतीजों का कांग्रेस पर पड़ेगा सबसे ज्यादा प्रभाव  चुनाव नतीजे सबसे अधिक कांग्रेस की राजनीति को प्रभावित करेंगे। बीते करीब नौ सालों से हर मोर्चे पर जूझ रही पार्टी जीत से दूर रही तो केंद्र में भाजपाविरोधी मोर्चे की अगुवाई का उसका दावा कमजोर होगा।

गांधी परिवार की प्रासंगिकता पर फिर सवाल उठेंगे। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का गृह राज्य होने के कारण उनके नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े होंगे। जीत की स्थिति में विपक्ष की अगुवाई करने का कांग्रेस का दावा मजबूत होगा। खरगे का राजनीतिक कद बढ़ेगा। इसके अलावा गांधी परिवार से जुड़े राहुल गांधी की प्रासंगिकता बची रहेगी।

खंडित जनादेश ही जदएस के लिए मुफीद 
राज्य में तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत जदएस की प्रासंगिकता तभी बचेगी जब जनादेश खंडित हो और पार्टी किंगमेकर के रूप में उभरे। खासतौर पर कांग्रेस की सरकार बनने और डीके शिवकुमार को सरकार की कमान मिलने के बाद पार्टी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। वह इसलिए कि शिवकुमार उसी वोक्कालिगा समुदाय से हैं, जिसकी राजनीति जदएस करती आई है। ऐसे में यह चुनाव जदएस के अस्तित्व से भी जुड़ा हुआ है।

त्रिशंकु जनादेश से दिलचस्प होगी भविष्य की जंग 
अगर एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक खंडित जनादेश के साथ जदएस किंगमेकर बनी तो भविष्य की जंग दिलचस्प होगी। भाजपा-कांग्रेस दोनों जदएस को साधना चाहेंगे। जदएस इस समय दोनों दलों से समान दूरी बना कर चल रही है। ऐसे में पार्टी का भावी रुख क्या होंगा इस पर सस्पेंस है। खंडित जनादेश की स्थिति में जोड़-तोड़ की राजनीति चरम पर होगी।

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