मध्य प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनावों में यह साफ कर दिया कि अब यहां दो दलों की राजनीति ही कायम रहने वाली है। उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जो असर था, उसे भी जनता ने खत्म कर दिया है। उत्तर प्रदेश की यह दोनों ही पार्टियां एक सीट को तरस गई। इतना ही नहीं, नई राजनीति की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) भी खाता नहीं खोल सकी।
मध्य प्रदेश की 230 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 163 वोटों पर जीत हासिल की। पूरे राज्य में भाजपा ने 48.55% वोट हासिल किए, जो 2018 के 41.02% के मुकाबले 7.53% अधिक हैं। इससे भाजपा की सीटों में जबरदस्त उछाल आया और अब वह आसानी से सरकार बनाने की स्थिति में है। दूसरी ओर कांग्रेस के वोट प्रतिशत की बात करें तो उसमें 0.49% की मामूली गिरावट आई है। भाजपा को मिले अधिक वोटों और इस आंशिक गिरावट की ही वजह से कांग्रेस की सीटें घटकर 66 रह गई। सबसे आश्चर्यजनक स्थिति उत्तर प्रदेश की प्रमुख पार्टियों- समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की रही। सीमावर्ती इलाकों में पिछले दो दशक से उपस्थिति दर्ज कराती रही यह पार्टियां इस बार खाता भी नहीं खोल सकी। लोकसभा चुनावों में जिस तरह 2019 और 2014 और इससे भी पहले सीधा मुकाबला भाजपा-कांग्रेस में था, उसी तरह विधानसभा चुनावों में भी नतीजे आए हैं। खास बात यह है कि पिछले चुनावों में दो सीटें जीतने वाली बसपा चार सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। कुछ हद तक उसने मौजूदगी का अहसास भी कराया। समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी तो उस स्थिति तक भी नहीं पहुंच सके। सपा के अखिलेश यादव और आप के दो मुख्यमंत्रियों- भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने विंध्य में जगह बनाने की भरसक कोशिश की थी। कई रोड शो भी किए, लेकिन वह न तो वोट प्रतिशत बढ़ा सके और न ही उमड़ी भीड़ को सीटों में तब्दील कर सके।
भाजपा को ऐतिहासिक वोट
मध्य प्रदेश में भाजपा को कुल 48.55% यानी 2.11 करोड़ वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को 40.40% यानी 1.75 करोड़ वोट मिले। पिछले चुनावों के मुकाबले कांग्रेस को मिले वोट बढ़े ही हैं। कम नहीं हुए हैं। प्रतिशत जरूर कुछ घटा है। इससे पहले 1977 की जनता लहर में जनसंघ को 47.28% वोट मिले थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को 48.87% वोट मध्य प्रदेश में मिले थे।
सैलाना में हुआ करिश्मा
रतलाम के सैलाना में भारतीय आदिवासी पार्टी के कमलेश्वर डोडियार चुनाव जीतकर आए हैं। 2018 में वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे। इस बार उन्होंने भारतीय आदिवासी पार्टी के बैनर को थामकर चुनाव मैदान पकड़ा और जीत हासिल की। उनके अलावा न तो कोई निर्दलीय चुनाव जीता और न ही किसी छोटी पार्टी को एक भी सीट नसीब हुई।