मध्यप्रदेश: नगर निकाय चुनाव के टिकटों को लेकर पार्टी नेताओं के बीच जमकर घमासान

मध्यप्रदेश में नगर निकाय चुनाव के टिकटों को लेकर पार्टी नेताओं के बीच जमकर घमासान मचा हुआ है। पार्टी ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर समेत 14 नगर निगम के मेयर उम्मीदवार घोषित कर दिए गए हैं। सभी उम्मीदवारों को क्षेत्रीय नेताओं की गारंटी के आधार पर टिकट बांटे गए हैं। महापौर टिकट वितरण में भाजपा को सबसे ज्यादा परेशानी इंदौर, भोपाल, ग्वालियर को लेकर हुई है। इन शहरों के दिग्गज नेता अपने अपने समर्थक को शहर की सरकार में मुखिया के रूप में देखना चाहते हैं। वे लगातार पर्दे के पीछे से लॉबिंग कर रहे थे। यही वजह है कि टिकट फाइनल करने में प्रदेश भाजपा के पसीने छूट गए।

जिन शहरों पर मेयर उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा थी। वहां पार्टी ने अपने तय मापदंडों के साथ साथ नए फॉर्मूले के तहत टिकट वितरण किया है। इसके तहत शहरों के जो नेता उम्मीदवार को टिकट देने की सिफारिश करेंगे, उन्हीं क्षेत्रीय नेताओं को प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी होगी। राजधानी भोपाल में फंसे पेंच को निकालने के लिए इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल किया गया है। यहां प्रदेश सरकार में मंत्री विश्वास सारंग, विधायक रामेश्वर शर्मा और कृष्णा गौर को उम्मीदवार मालती राय को जिताने की गारंटी सौंपी गई है। मालती राय दो बार पार्षद का चुनाव हार चुकी हैं। बावजूद इसके विधायक मालती राय को ही टिकट देने पर अड़े रहे।

इंदौर के टिकट को लेकर सबसे ज्यादा खींचतान

सबसे ज्यादा खींचतान इंदौर के टिकट को फाइनल करने को लेकर दिखी। यहां से डॉ. निशांत खरे को टिकट देने की पैरवी खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे थे। हालांकि उन्होंने विकल्प के तौर पर मधु वर्मा के नाम पर विचार करने का सुझाव दिया था। लेकिन पार्टी के अंदरूनी विरोध और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के असहमत होने से बात नहीं बन सकी। इसी बीच एबीवीपी से भाजपा में आए पुष्यमित्र भार्गव का नाम प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रस्तावित किया। लेकिन मंगलवार सुबह तक किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई थी। इसके बाद पार्टी ने इंदौर, ग्वालियर और रतलाम को छोड़कर सभी शहरों से उम्मीदवार की घोषणा कर दी।

इसके बाद फिर इंदौर के क्षेत्रीय नेताओं और विधायकों के साथ भोपाल में मंत्रणा की गई। फिर से बैठक कर आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया। अंत में विजयवर्गीय समेत अन्य नेताओं की सहमति के बाद भार्गव का नाम लगभग तय माना जा रहा है। भार्गव हाई कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता है। इस्तीफे के बाद ही चुनावी मैदान में उतर पाएंगे। पुष्यमित्र युवा, नया चेहरा और ब्राह्मण होने के कारण पार्टी और संघ की पसंद हैं क्योंकि कांग्रेस ने इंदौर सीट से क्षेत्र क्रमांक एक के विधायक संजय शुक्ला को मैदान में उतारा है।

इधर, सागर से संगीता तिवारी को जिताने की जिम्मेदारी नगरीय विकास और आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह के कंधों पर है। कटनी में पूर्व मंत्री संजय पाठक के समर्थक और रेत कारोबारी विनय दीक्षित की पत्नी ज्योति दीक्षित को टिकट दिया गया है। रीवां से पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला की गारंटी पर प्रबोध व्यास को मैदान में उतारा गया है। सामान्य सीट सिंगरौली पर ब्राह्मणों की नाराजगी के बावजूद ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारा गया है। यहां से विधायक रामलल्लू वैश्य की सिफारिश पर चंद्र प्रताप विश्वकर्मा को टिकट दिया गया है। खंडवा से उम्मीदवार अमृता यादव को जिताने की जिम्मेदारी सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल और विधायक देवेंद्र वर्मा ने ली है।

‘काम नहीं आया पार्टी का सर्वे’

मध्यप्रदेश की राजनीति और भाजपा पर बारीकी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनिल गुप्ता ने अमर उजाला से कहा कि अब तक भाजपा उम्मीदवारों के टिकट वितरण के लिए सर्वे को महत्व देती थी। इसके साथ ही जिस उम्मीदवार को जिताने की गारंटी सीएम लेते थे, पार्टी उसका टिकट फाइनल कर देती थी। लेकिन इस बार पार्टी का सर्वे काम नहीं आया है। जो मूल कार्यकर्ता हैं उन्हें टिकट दिया गया है। इनमें अधिकांश उम्मीदवार आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले हैं। पार्टी के सर्वे में इंदौर के उम्मीदवार के तौर पर विधायक रमेश मेंदोला का नाम सबसे ऊपर था। लेकिन विधायकों को टिकट नहीं देने के मापदंड के चलते उनका नाम फाइनल नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति भोपाल में भी थी क्योंकि विधायक कृष्णा गौर को टिकट नहीं देना था तो मालती राय को उम्मीदवार बना दिया गया।

गुप्ता कहते हैं कि चुनाव में किसी भी राजनीतिक पार्टी का पहला मापदंड होता है कि उनका उम्मीदवार जिताऊ होना चाहिए। लेकिन इस बार ये बात भाजपा के प्रत्याशियों में नजर नहीं आ रही है। इस बार सभी सीटों पर भाजपा को पहले के मुकाबले ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। पहली बार सत्ता और संगठन ने आपसी समन्वय बनाया है। इसी के बाद ही महापौर उम्मीदवारों के नाम तय किए गए। सभी टिकट समन्वय और तालमेल के साथ तय किए गए है। 13 प्रत्याशियों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो जाना पहचाना चेहरा हो। रीवा, सतना, कटनी, जबलपुर, सागर, इंदौर, देवास, खंडवा और भोपाल के उम्मीदवार चुनावी राजनीति में नए है।

वरिष्ठ पत्रकार गुप्ता बताते हैं कि यह पहली बार है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के टिकट वितरण में गुटबाजी नजर नहीं आई। बहुत आसानी से सभी सीटों के टिकट फाइनल हो गए। भाजपा को यही टिकट तय करने में 5-6 दिन लग गए। अभी भी तीन सीटों को लेकर मंथन जारी है। कमलनाथ का सर्वे और दिग्विजय सिंह के तालमेल से कांग्रेस के टिकट जल्द हो गए। कहीं न कहीं यह भाजपा को चुनौती देते हुए दिख रहा है।

14 में से सात उम्मीदवार संघ की पसंद

भाजपा ने 14 नगर निगमों के प्रत्याशियों का एलान किया है। इनमें सात आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं। जबलपुर से उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र जामदार की पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी है। वे पिछले कई वर्षों से संघ के विभिन्न संगठनों के माध्यम से काम कर रहे हैं। फिलहाल वे जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष हैं। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा भी प्राप्त है। इसी तरह सतना से योगेश ताम्रकार को मौका दिया गया है। उनके पिता शंकर ताम्रकार प्रांत संघ चालक रहे हैं। उन्हें बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बनाया गया। अब उन्हें महापौर का टिकट दिया गया है।

भाजपा ने ग्वालियर और रतलाम निगम के महापौर के उम्मीदवारों का एलान अभी तक नहीं किया है। ग्वालियर की सुमन शर्मा का नाम प्रत्याशियों की दौड़ में सबसे आगे है। यहां माया सिंह भी अपनी दावेदारी ठोंक रही हैं। लेकिन उम्रदराज होने के कारण वे बाहर हो सकती हैं। मंगलवार रात केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सारे नेताओं के बीच एक नाम पर सहमति बनाई है। इधर, रतलाम का कांग्रेस प्रत्याशी घोषित नहीं होने के कारण भाजपा का नाम भी रुका हुआ है।

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