महामना मालवीय अपने आप में इंस्टीट्यूशन थे- अमित शाह

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘भारत रत्न’ पंडित मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya) के 160वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मालवीय जी एक ऐसे महान शिक्षाविद थे जिन्होंने शिक्षा के मूलतत्व को जाना और देश को आज कैसी शिक्षा की जरूरत है और भविष्य में कैसी शिक्षा की जरूरत पड़ने वाली है, इन दोनों को समझते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक नई शिक्षा पद्धति को प्रतिस्थापित करने का काम किया.

उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय एक प्रकार से व्यक्ति नहीं बल्कि इंस्टीट्यूशन थे. उन्होंने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद की नींव डालने का यश अगर किसी को जाता है तो वो मदनमोहन मालवीय को ही जाता है. शाह ने कहा, “आजादी की लड़ाई उन्होंने सिर्फ राजनेता के तौर पर नहीं लड़ी बल्कि एक पत्रकार के तौर पर, वकालत के जरिए भी लड़ी. मात्रभाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता का एक साथ उद्घोष करने वाले एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय जी थे.”

गृह मंत्री शाह ने कहा कि उन्हें स्कूल में पढ़ाने वाले गुरुजी ने मालवीय जी की जो व्याख्या की थी, उसे वह जीवन भर भूल नहीं सकते हैं. उन्होंने बताया, “वो व्याख्या थी- सनातन वैदिक धर्म के चलते-फिरते विग्रह पंडित मदन मोहन मालवीय हैं. पांचवीं-छठी कक्षा में मैं इसे समझ नहीं पाया था. लेकिन एक जिज्ञासा उन्होंने पंडित मालवीय जी के बारे में पैदा कर दी थी. इसके बाद उनके व्यक्तित्व को लगातार समझता गया. वो एक ऐसा व्यक्तित्व था जो शायद करोड़ों वर्षों में एक बार पृथ्वी पर जन्म लेता है.”

हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत तीनों भाषा के विद्वान थे महामना- शाह

उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत इन तीनों भाषाओं के ज्ञाता थे, इन तीनों भाषाओं में धाराप्रवाह भाषण दे सकते थे. उन्होंने कहा, “बड़े दुख की बात है कि आजादी के तुरंत बाद मालवीय जी को भारत रत्न मिल जाना चाहिए था. जब 2014 में उनको भारत रत्न मिला तब काफी लोगों ने कहा कि भारत रत्न की जरूरत नहीं थी, ‘महामना’ ही उनके लिए बहुत बड़ी उपाधि थी, जो स्वयं रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महात्मा गांधी जी ने दी थी.”

शाह ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय ने बहुत ही व्यावहारिकता के साथ वेदांत के सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात किया और आजीवन समाज के बीच में रहते हुए वेदांत का प्रचार किया. उनके इसी समर्पण को देख प्रोफेसर एस के मैत्रा ने उन्हें ‘प्रैक्टिकल वेदांती’ कहा.

मालवीय जी अस्पृश्यता के प्रखर विरोधी- अमित शाह

उन्होंने कहा कि महामना मालवीय अस्पृश्यता के बहुत प्रखर विरोधी थे, वो इसे शास्त्रसम्मत नहीं मानते थे. उन्होंने मालवीय और जगजीवन राम का एक किस्सा सुनाते हुए कहा, “बिहार में एक कार्यक्रम में जगजीवन राम ने महामना का सम्मान किया था. उन्होंने जगजीवन राम के भाषण को सुनकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बुला लिया. हॉस्टल में रहने के दौरान जब दलित होने के कारण जगजीवन राम का बर्तन धोने से कर्मचारी ने इनकार कर दिया तो महामना ने कहा कि आज से जगजीवन राम मेरे कमरे में रहेंगे और उनके बर्तन मैं साफ करूंगा.”

शाह ने कहा, “बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का सवाल है तो मैं अभी भी मानता हूं कि मालवीय जी के जीवन की सभी उपलब्धियों में सबसे बड़ी कोई उपलब्धि है तो वो काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना है. स्वधर्म, स्वभाषा, भारतीय संस्कृति और स्वराज इन चारों चीजों को शिक्षा के साथ बुनना और आधुनिक शिक्षा से युक्त युवाओं को देश के पुननिर्माण में लगाना इस उद्देश्य को उस जमाने में मालवीय जी ने जमीन पर उतारा.”

पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था. साल 1909 में उन्होंने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की थी. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई. उन्हें वर्ष 2014 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया था.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here