मेरठ:किरायेदारों ने बेच डालीं नगर निगम कि दुकाने

मेरठ में नगर निगम के किरायेदारों ने 30 से ज्यादा दुकानें ही बेच डालीं। यही नहीं पालिका बाजार में शौचालय को भी दुकान का नंबर दे दिया गया। अब इसकी पत्रावली तक गायब हो गई है। पहले शौचालय पर एक व्यक्ति ने अपना ताला डाल दिया तो अब निगम ने यहां अपना ताला डालकर सील लगाई है। 

घंटाघर पर नगर निगम के पालिका बाजार में 189 दुकानें हैं। बताया जा रहा है कि इनमें से 30 से अधिक दुकानें ऐसी हैं जिनको मूल आवंटियों ने दूसरे लोगों को बेच दिया है। इनमें से कुछ तो निगम के लिपिक और अधिकारियों से साठगांठ करके सिकमी किरायेदार बन गए हैं। कुछ ऐसे हैं जो मूल किरायेदार के नाम से ही निगम में दुकान का किराया जमा कर रहे हैं। निगम के कुछ मूल किरायेदार दूसरों से लाखों रुपये की रकम वसूलकर दूसरों को दुकान दे रहे हैं। इस खेल में नगर निगम को करोड़ों रुपये का फटका लग चुका है। 

निगम के अधिकारियों के अनुसार 2010 में निगम बोर्ड ने सिकमी किरायेदारों के संबंध में प्रस्ताव पास किया था। लेकिन इस पर शासन ने आज तक गजट नोटिफिकेशन नहीं किया है। बोर्ड के ऐसे फैसले पर शासन की मुहर जरूरी है। उधर, नगर निगम किराया विभाग के अधिकारियों ने बोर्ड में पास प्रस्ताव को ही आधार मानते हुए सरकारी दुकानों की खरीद-फरोख्त को सही करार देना शुरू कर दिया। पार्षद ललित नागदेव ने यह मामला बोर्ड मीटिंग में भी उठाया था। 

यह है सिकमी किरायेदार
नगर निगम अपनी दुकानें किराये पर देता है। नियम यह है कि अगर यह किरायेदार दुकान खाली करेगा तो निगम को वापस लौटाएगा। मूल किरायेदार को आगे यह दुकान किसी अन्य को देने का अधिकार नहीं है। अगर मूल किरायेदार खुद ही दुकान किसी अन्य को दे देता है तो नए किरायेदार को सिकमी कहा जाता है। मूल किरायेदार किसी दूसरे को अपने कारोबार में तो साझीदार बना सकता है पर दुकान में नहीं। 

न विज्ञापन और न लॉटरी, शौचालय कैसे बन गया दुकान
नगर निगम अधिकारियों ने सरकारी संपत्ति के आवंटन की नियमानुसार प्रक्रिया को भी तार-तार कर दिया। सरकारी दुकान हो या कोई अन्य संपत्ति किराये पर दिए जाने या बेचने के लिए सबसे पहले विज्ञापन निकालना होता है। इसके बाद लॉटरी होती है, जिसमें किरायेदार बोली लगाते हैं। इसमें आरक्षण तक की व्यवस्था होती है। 

यहां गोलमाल है…
दुकान नंबर 10 मूल आवंटी महेन्द्र पाल,  31 मार्च 2021 से सिकमी किराएदार समीर पुत्र मोहम्मद हनीफ हैं। 
दुकान नंबर 117, मूल आवंटी सुशील कुमार शर्मा पुत्र शशिकांत शर्मा और अब सिकमी किराएदार साजिद अली, शहजाद पुत्र शाहबुददीन हैं। 
दुकान नं. पांच, मूल आवंटी मुकेश कुमार सोम और 20 फरवरी 2021 से दुकान के मालिक महबूब पुत्र हरीमुददीन हैं। 
दुकान नं. 134, मूल किराएदार राहुल मित्तल पुत्र ओम प्रकाश और अब निगम के किराएदार इरशाद मलिक हैं। 
दुकान नं. 172,  मूल किराएदार सुशील कुमार पत्र शशिकांत शर्मा और अब हुसनबाना पत्नी रियाज सिकमी किराएदार हैं। 
दुकान नं. 27, मूल किराएदार दीपका मनोचा पत्नी श्याम सुंदर मनोचा और अब सिकमी किराएदार के रूप में मेहराज अहमद हैं। 
दुकान नं. आठ, मूल किराएदार अब्दुल अजीज पुत्र अब्दुल रहमान थे और अब अकरम पुत्र यासीन सिकमी किराएदार हैं। 
दुकान नं. 16, मूल किराएदार श्याम सुंदर पुत्र रोपन थे और अब इंतखाब अहमद सिकमी किराएदार हैं। 

जांच का विषय है 
कुछ दुकानदार हमारे पास किराये की कुछ रसीद और न्यायालय का आदेश लेकर आए थे। बताया गया है कि पालिका बाजार के कुछ दुकानादारों ने शौचालय बंद कराने की मांग की थी। उसी के अनुरूप शौचालय को दुकान बनाया गया है। अगर दुकान का रिकॉर्ड किराया विभाग में नहीं है तो जांच का विषय है। सभी पत्रावलियों की जांच की जाएगी। – ममता मालवीय, अपर नगरायुक्त एवं प्रभारी नगरायुक्त

नहीं मिल रहीं पत्रावलियां
पिछले सप्ताह शौचालय को कब्जा मुक्त कर निगम का ताला डलवाया था। शौचालय के स्थान पर जिस दुकान नंबर की बात कही जा रही है उसका रिकॉर्ड नगर निगम में नहीं मिला है। लिपिक से पूरी रिपोर्ट लेकर अपर नगरायुक्त को भेज दी गई है। अन्य कुछ दुकानों की पत्रावालियां भी नहीं मिल रही हैं। – ब्रजपाल सिंह, सहायक नगरायुक्त एवं प्रभारी किराया

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