मुस्लिम भी हमारे ही हैं, संघ का कोई पराया नहीं, आलोचना करने वाले हिन्दू धर्म को नहीं जानते: भागवत

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक मोहनराव भागवत ने कहा कि मुस्लिम भी हमसे अलग नहीं हैं, वह भी हमारे ही हैं बस उनकी पूजा पद्धति बदल गई है। यह देश उनका भी है वह भी यहीं रहेंगे। उन्होंने कहा कि संघ सम्पूर्ण समाज को संगठित करना चाहता है इसमें संघ का पराया कोई नहीं। जो आज हमारा विरोध करते हैं, वे भी हमारे हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन यह पक्का है, कि उनके विरोध से हमारी क्षति न हो, इतनी चिंता हम जरूर करेंगे।

सरस्वती शिशु मंदिर में शाम को दूसरे दौर के संवाद में सेना सहित कुछ अन्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने संवाद किया। संघ प्रमुख ने कहा कि हिन्दू धर्म की आलोचना करने वाले हिन्दू धर्म को जानते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण है जब लोगों ने हिन्दू धर्म को जाना और समझा तो वह भी प्रशंसक हो गए। उन्होंने कहा कि सनातन कोई धर्म नहीं बल्कि संस्कृति है।

जो अच्छा काम कर रहे हैं उनका सहयोग करें
भागवत ने कहा कि समाज में प्रबुद्धजन यदि तटस्थ रहेंगे तो राजनीति भटक जाएगी। उन्होंने कहा कि समाज में जो अच्छा काम हो रहा है उसका सहयोग करना चाहिए। अवध प्रांत के चार दिवसीय प्रवास के अंतिम दिन मोहन भागवत ने सोमवार सुबह और शाम को दो चरणों में शिक्षा, वकालत, सेना, कृषि, चिकित्सा, पत्रकारिता सहित अन्य क्षेत्र से जुड़े लोगों से संवाद किया। सरस्वती शिशु मंदिर में शाम को दूसरे दौर के संवाद में सेना सहित कुछ अन्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने कहा कि वह राजनीति या किसी पार्टी से नहीं जुड़ना चाहते हैं। भागवत ने कहा कि संघ भी राजनीतिक संगठन नहीं हैं। लेकिन समाज में जो अच्छा काम हो रहा है उसका सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों की ओर से समाज में परिवर्तन के लिए अनेक अच्छे कार्य किए जा रहे हैं। प्रबुद्ध जन उन कार्यों में सहयोगी हो सकते हैं।

सुबह पहले सत्र में एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आर.के. धीमान, केजीएमयू के बालशल्य रोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एसएन, कुरील, केजीएमयू दंत संकाय के डॉ. मोहम्मद शादाब, सीएमएस के अध्यक्ष जगदीश गांधी, पद्मश्री डॉ. एसएस सरकार, पत्रकार के.विक्रम राव, रामदत्त त्रिपाठी सहित लोग मौजूद थे। शाम को दूसरे चरण के संवाद में पद्मश्री विद्या विंदू, डॉ. पूर्णिमा पांडेय, किसान कलीमुल्ला, एडवोकेट एस.के.कालिया और सेना के अधिकारी सहित अन्य लोग मौजूद थे।

स्वयं सेवकों ने देश को फिर विश्व गुरु बनाया
मोहन भागवत ने कहा कि संघ इतिहास में यह नहीं लिखना चाहता है कि स्वयंसेवक संघ के कारण देश का उद्धार हुआ। उन्होंने कहा कि संघ इतिहास में यह लिखना चाहता है कि संघ के कारण इस देश में एक ऐसी पीढ़ी निर्माण हुई, जिसने उद्यम किया और अपने देश को पूरी दुनिया का गुरु बनाया।

संघ ने भी दिखाया सबका साथ, सबका विकास
आरएसएस प्रमुख के संवाद में भी सबका साथ-सबका प्रयास की झलक दिखी। मोहन भागवत से संवाद के लिए मुस्लिम वर्ग से डॉ. मोहम्मद शादाब और आम की कई प्रजापतियों के जनक कलीमुल्ला को भी आमंत्रित किया गया। संघ प्रमुख ने कहा भी कि संघ सबको जोड़ने और सभी को बुलाने का प्रयास करता है।

पाकिस्तान का विरोध करने वाले देशों का सहयोग करना चाहिए
एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि वह भारत की विदेश नीति पर कोई सलाह नहीं दे रहे हैं। लेकिन भारत ने जिस तरह बांग्लादेश का सहयोग किया था, उसी तरह पाकिस्तान का विरोध करने वाले देशों का भारत को सहयोग करना चाहिए।

सामाजिक विसंगतियों को दूर करने में सहयोग करें प्रबुद्धजन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले प्रबुद्धजन सामाजिक विसंगतियों को दूर करने में सहभागिता निभाएं। सोमवार को प्रबुद्धवर्ग के लोगों से संवाद में संघ प्रमुख ने राष्ट्र की उन्नति, सामाजिक समरसता और भारतीय संस्कृति की रक्षा पर जोर दिया।

संघ प्रमुख ने बच्चों में संस्कारों की कमी पर चिंता जताते हुए कहा कि मोबाइल के कारण बच्चे संस्कार से दूर हो रहे हैं। उनका बचपन खराब हो रहा है। उन्होंने शिक्षाविद्, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से इस समस्या के समाधान के लिए अभिभावकों को जागरूक करने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि जातिप्रथा, भेदभाव जैसी सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए समाज को एकजुट करना होगा। आपसी संवाद स्थापित होने से ही एकजुटता आएगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की उन्नति और भारत का सम्मान बनाए रखने के लिए प्रत्येक प्रबुद्ध के सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रबुद्धजन इस राष्ट्र को समझकर और सारे देश को एक करने की दिशा में जो भी छोटा-बड़ा काम अपनी पद्धति से करना चाहते हैं, वह कीजिए।

नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाए
पद्मश्री विद्या विंदु ने बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बनाए जा रहे पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को प्रमुखता से शामिल करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों को ही नहीं बल्कि अभिभावकों को भी संस्कार, संस्कृति, परंपराओं का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

तीन भाषा नीति लागू होनी चाहिए
एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने माना कि शिक्षा में तीन भाषा नीति लागू होनी चाहिए। एक मातृ भाषा, एक भारतीय भाषा और तीसरी अन्य भाषा हो सकती है।

वैसी प्रार्थना अब नहीं होती
एडवोकेट एस.के. कालिया ने कहा कि उनके बचपन में स्कूलों में प्रार्थना होती थी… वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं, परसेवा, पर उपकार में हम जग जीवन सफल बना पाएं… ऐसी प्रार्थना से बच्चे संस्सकारवान बनते थे।

हम सर्वलोक युक्त भारत वाले हैं
संघ प्रमुख ने कहा कि हम लोग तो सर्व लोकयुक्त भारत वाले लोग हैं, मुक्त वाले नहीं।

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