मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण: किसका विकास!

मुजफ्फरनगर बाईपास (नेशनल हाईवे) पर ग्राम बागोवाली के समीप बने होटल में छापामार कर एस.डी.एम सदर परमानंद झा और सी.ओ सदर ने सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया। कार्यवाही के दौरान यह भी पता चला कि जिस होटल में जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था, उसका नक्शा मुजफ्फरनगर प्राधिकरण से पास नहीं है। इतना बड़ा होटल बन गया और एम.डी.ए को इसकी भनक नहीं लगी। यह भी पता चला कि हाईवे पर 150 से अधिक होटल हैं जिन्होंने एम.डी.ए से नक्शा स्वीकृत नहीं कराया है।

जिला अधिकारी के निर्देश पर बागोवाली वाला होटल ढहा दिया गया। एम.डी. ए के विरुद्ध सिर्फ यह कार्यवाई हुई कि डी.एम ने 5 अवर अभियन्ताओं के कार्यक्षेत्र बदल दिये।

प्रश्न यह है कि एम.डी.ए के अधिकारियों का ध्यान अवैध निर्माणों पर क्यों नहीं जाता? जहां तक एम.डी.ए की सक्रियता का सवाल है, आम जनता जानती है कि मकान में दो ईंटें लगाने, मरम्मत या विस्तार करने पर एम.डी.ए के लोग गिद्ध की भांति वहां मंडराने लगते हैं।

मुजफ्फरनगर में ऐसे अनेक मार्केट व व्यवसायिक स्थल ऐसे हैं जिनका निर्माण मानक के अनुसार नहीं हुआ। इन व्यावसायिक केन्द्रों में शौचालय तक नहीं है, पार्किंग की व्यवस्था का तो प्रश्न ही नहीं।

अभी 4 अप्रैल को एम.डी.ए और तहसील कर्मियों की सांठगांठ तथा मार्केट निर्माण में बड़ा खेल होने का प्रकरण प्रकाश में आया। तत्कालीन तहसीलदार सदर इन्द्रदेव शर्मा, कानूनगो रामनारायण और लेखपाल संजय शर्मा लपेटे में हैं।

मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण की स्थापना हुए दशकों बीत गए, इस अवधि में एम.डी.ए ने मुजफ्फरनगर के विकास, सुन्दरीकरण, पार्क या पिकनिक स्पॉट या जन सुविधाओं के विस्तार का एक भी काम किया? केवल फाइलों को टटोला गया कि उनका कैसे विकास होगा। यदि नगर के भवनों, बाजारों, होटलों आदि तथा एम.डी.ए के लोगों की माली हालत, चल-अचल संपत्ति का सर्वे हो तो पूरी असलियत सामने आ जाएगी। लेकिन ऐसा करेगा कौन? डी.एम साहब ने तो 5 जेई के स्थान बदल कर प्रकरण पर विराम लगा दिया है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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