उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को कहा कि सरकार के विवेकाधीन कोटे से भूखंडों के आवंटन का प्रावधान समाप्त करना समय की मांग है। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने ओडिशा उच्च न्यायाल के एक फैसले को चुनौती देने वाली वहां की राज्य सरकार की याचिका की सुनवायी के दौरान ये टिप्पिणियां कीं।
पीठ ने विवेकाधीन कोटे से सरकारी भूखंडों एवं इसी प्रकार की अन्य सरकारी संपत्तियों के आवंटन को भ्रष्टाचार, पक्षपात और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने वाला करार दिया और कहा कि अब इस प्रकार की दरियादिली के प्रावधान को खत्म करने का समय आ गया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि भूखंडों के आवंटन के लिए तय दिशानिर्देशों का पालन की बात तो कही जाती है लेकिन कई बार शायद ही उनका पालन किया जाता है। इतना ही नहीं कई बार तो विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर दिशानिर्देशों में भी बदलाव कर दिये जाते हैं।पीठ ने कहा कि बेहतर होगा कि विवेकाधीन कोटा और सार्वजनिक संपत्तियों/भूखंडों का आवंटन जनहित के प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत के माध्यम से नीलामी की जाये।