बिहार में धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता नहीं: मुख्यमंत्री नितीश

देश में समय-समय पर धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग उठती रहती है। बिहार में भी धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग कुछ नेताओं की ओर से लगातार की जा रही है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बिहार में भी धर्मांतरण विरोधी कानून आएगा? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून आ चुका है। बिहार में भी भाजपा गठबंधन की सरकार है। आज इसी को लेकर बिहार में गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल पूछा गया। कुमार ने साफ तौर पर कह दिया कि फिलहाल बिहार में धर्मांतरण विरोधी कानून की कोई जरूरत नहीं है। दरअसल, बिहार में धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर चर्चा लगातार जारी थी। राज्य में इस कानून की आवश्यकता लगातार बताई जा रही है। 

यही कारण था कि मीडिया ने आज खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल पूछ लिया। मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार सरकार हमेशा यहां अलर्ट रहती है। बिहार में सभी लोग चाहे वह किसी धार्मिक समूह के हो शांति से रहते हैं। इसलिए यहां धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता नहीं है। समाजवादी आंदोलन के जरिए राजनीति में आने वाले नीतीश कुमार ने अपने इस बयान के जरिए भाजपा को स्पष्ट रूप से यह संदेश तो दे ही दिया कि फिलहाल उनकी पार्टी बिहार में इस तरह के किसी भी कानून के पक्ष में नहीं है। यह नीतीश कुमार के द्वारा भाजपा को दिया गया स्पष्ट संदेश माना जा रहा है। भाजपा की ओर से समय-समय पर बिहार में धर्मांतरण विरोधी कानून और जनसंख्या नियंत्रण कानून की भी मांग की जाती रही है। हालांकि नीतीश कुमार अक्सर इन कानूनों से इनकार करते हैं।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जैसे भाजपा नेता धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं। जाति जनगणना के मुद्दे पर नीतीश और भाजपा के बीच वैचारिक विभाजन भी सामने आया है। भाजपा के नेता, जिसमें नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल पार्टी के कुछ मंत्री सहित, रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के बिहार में घुस आने का आरोप लगाते रहे हैं और उनकी मांग है कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन्हें राज्य में प्रस्तावित जाति आधारित गणना में शामिल करके उनके प्रवास को वैध न बनाया जाए। नब्बे के दशक से राजनीतिक साथी होने के बावजूद, नीतीश के अयोध्या, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता, तीन तालक, एनआरसी और जनसंख्या नियंत्रण के लिए विधायी उपायों जैसे मुद्दों पर भाजपा जैसे विचार नहीं रहे हैं।

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