ओडिशा ट्रेन हादसा: 51 घंटे, 2300 कर्मचारी और चार कैमरों ने कैसे बचाई हजारों की जान

ओडिशा के बालासोर जिले में 2 जून यानी शुक्रवार को एक भीषण ट्रेन हादसा हुआ था। यहां, बहनागा रेलवे स्टेशन के पास तीन ट्रेनों की आपस में टक्कर हो गई थी। इस हादसे में 288 लोगों की मौत, जबकि करीब 1000 यात्री घायल हुए। इस हादसे से होने वाले नुकसान का पता लगाना बहुत ही मुश्किल है। न जानें कितने परिवारों ने अपने लोगों को खो दिया, जबकि कुछ को तो अपनों का पता ही नहीं चला। जब यह रेल दुर्घटना हुई, तब लोगों को इसका अंदाजा नहीं था कि इसका असर कितना विनाशकारी होगा। इस मामले में सबसे पहले जिसपर सवाल उठने वाले थे वह था भारतीय रेलवे। रेलवे विभाग के सामने कई चुनौतियां थीं। ऐसे में, बिना देर किए बिना हादसे के कुछ ही घंटों के भीतर केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव घटनास्थल पर पहुंच गए थे और 2300 कर्मचारियों की मदद से हालात को सामान्य किया गया।

योजना के साथ पहुंचे थे वैष्णव 

उन्होंने दुर्घटना की गंभीरता को समझते हुए मौके पर जाने का फैसला लिया।  रेल मंत्री ने बचाव और राहत कार्यों की निगरानी करते हुए दुर्घटनास्थल का दौरा किया। पर आपको बता दें, उनका घटनास्थल पर पहुंचना और मौके का दौरा करना किसी भी योजना के बिना नहीं था।

रेल विभाग के सामने थी कई चुनौतियां

दर्दनाक हादसा हो चुका था। लोग इधर-उधर भाग रहे थे। ऐसे में अधिकारियों के सामने चुनौती थी कि इन स्थिती में लोगों की मदद कैसे की जाए और हालात को सामान्य कैसे किया जाए। अधिकारियों को सोचना था कि अगला कदम क्या उठाया जाए और आगे की क्या योजना है? वास्तव में रेल मंत्री ने ठीक वैसा ही काम किया, जो करना था। इसमें कुछ अलग नहीं था। 

लोगों को जिंदा बचाने की योजना

सबसे पहले योजना बनाई गई कि अधिक से अधिक जिंदगियां कैसे बचाई जाएं। ऐसे में फैसला लिया गया कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जिंदा बचाने के लिए मानव संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल हो। साथ ही घायलों को जल्द-से-जल्द चिकित्सा सहायता प्रदान करना सुनिश्चित किया गया था और सबसे अधिक ध्यान ट्रेन लाइन को सही करने पर केंद्रित किया गया, ताकि जितनी जल्दी हो सके वहां से ट्रेनों की आवाजाही फिर से शुरू हो।

आठ टीमों ने किया रात-दिन एक 

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि घटनास्थल पर काम करने के लिए कम से कम 70 सदस्यों के साथ आठ टीमों का गठन किया गया था। फिर इनमें से प्रत्येक दोनों टीमों की निगरानी वरिष्ठ अनुभाग अभियंताओं (एसएसई) द्वारा की गई। इसके अलावा, इन इंजीनियरों की निगरानी की जिम्मेदारी एक डीआरएम और एक रेलवे जीएम को दी गई। आगे इनकी निगरानी भी रेलवे बोर्ड के एक सदस्य द्वारा की गई थी।

इसके अलावा, रेल मंत्रालय के अधिकारी घटनास्थल पर ट्रेन की पटरी को ठीक करने और उसकी मरम्मत के काम में जुटे थे। चूंकि, इन सब काम में बहुत सारी टेक्निकल चीजें शामिल होती हैं इसलिए अधिकारी यहां भी काम मे लगे थे। 

लोगों के इलाज पर भी खासा ध्यान

हालांकि, विभाग का सारा ध्यान सिर्फ ट्रैक को सही करने पर ही नहीं था। दूसरा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर था कि जिन लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उन्हें भी किसी तरह की कोई समस्या न हो। इसी सिलसिले में, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को कटक के अस्पताल में रखा गया है, जबकि डीजी हेल्थ को भुवनेश्वर के अस्पताल में भेजा गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इलाज करा रहे यात्रियों को किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं हो रही और साथ ही उन्हें उचित इलाज मिल सके। 

अधिकारियों को दिए गए थे स्पष्ट निर्देश

रेल मंत्री की अगुवाई वाली टीम में काम करने वाले एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमारे लिए बहुत स्पष्ट निर्देश थे कि न केवल घटनास्थल पर बचाव और राहत अभियान महत्वपूर्ण है, बल्कि अस्पताल में उन लोगों का आराम भी उतना ही जरूरी है। यही कारण है कि वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति की निगरानी के लिए भेजा गया था। 

चार कैमरों से निगरानी

घटनास्थल पर रेल मंत्री लगातार अपनी नजर रखे हुए थे। वहीं, राष्ट्रीय राजधानी में रेल मंत्री का मुख्यालय में वार रूम चौबीसों घंटे घटनाक्रम पर लगातार नजर रख रहा था। एक अधिकारी ने बताया कि घटनास्थल पर जमीनी घटनाक्रम की लाइव फीड देने वाले चार कैमरों की लगातार एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा निगरानी की जा रही थी। ये अधिकारी मंत्री और उनकी टीम को पूरी घटना का विवरण दे रहे थे।

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