छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हत्यायें


5 नवम्वर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव से 3 दिन पूर्व प्रचार के दौरान नारायणपुर जिला भाजपा के उपाध्यक्ष और चुनाव प्रभारी रतन दुबे की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पश्चिमी बंगाल की भाँति छत्तीसगढ़ में भी विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता असामाजिक तत्वों के निशाने पर हैं। पिछले 9 महीनों के भीतर छत्तीसगढ़ में 7 भाजपा कार्यकर्त्ता हिंसा के शिकार हुए हैं। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यह कहने का बहाना मिल जाता है कि ये हत्यायें राजनीतिक नहीं अपितु नक्सली हत्यायें हैं।

छत्तीसगढ़ कई दशकों से नक्सली हिंसा का शिकार है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सहित तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तक नक्सलवादी हिंसा के शिकार हुए हैं। चूंकि केन्द्र की सत्ता में बैठी भाजपा नक्सली हिंसा और माओवादी उग्रपंथियों का पूरे देश में उन्मूलन करने में जुटी है, इसलिए नक्सली आतंकवादी भाजपा के प्रति शत्रुता का भाव रखते होंगे और वे नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सत्तारूढ़ हो। यह स्वाभाविक है कि नक्सलवाद के प्रति कांग्रेस की बघेल सरकार नर्मरुख के चलते, नक्सलियों का रुख भी कांग्रेस के प्रति नर्म हो।

भारतीय जनता पार्टी की परेशानी यह है कि उसे अपने राजनीतिक विरोधियों के अपप्रचार का भी सामना करना पड़ता है और गाली-गलौच के साथ-साथ शारीरिक हिंसा का भी शिकार बनना पड़ता है। पिछले विधान सभा चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में तृणमूल कार्यकर्ताओं ने 180 भाजपा कार्यकर्तायों की हत्याएँ कीं। चुनाव परिणाम ममता बनर्जी के पक्ष में आने के बाद भाजपा के 8 कार्यालयों को फूंका गया और कमल का झण्डा देखकर मकानों, दुकानों में आग लगाई गई। चुनाव पश्चात हत्या, मार-काट, हिंसा की 273 घटनाओं की प्राथमिकी दर्ज की गई और इससे कहीं बड़ी संख्या में हुई हिंसक घटनाओं की एफआईआर भी दर्ज नही की गई। पश्चिमी बंगाल में पिछले जुलाई मास में सम्पन पंचायत चुनाव भी रक्तरंजित रहे। पंचायत चुनाव के दौरान 45 भाजपा कार्यकर्त्ताओं की हत्यायें हुईं किन्तु ममता ने राज्यपाल, हाईकोर्ट, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को धता बनाते हुए हमलावरों को क्लीनचिट दे दी।

पश्चिमी बंगाल हो या छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गैर भाजपाई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता राजनीतिक हिंसा के शिकार होते हैं। विरोधी नेता मोदी तेरी कब्र खुदेगी जैसे नारे खुले मंच से लगाते हैं। लोकतंत्र-लोकतंत्र चिल्लाने वाले नेता देश में हिँसक वातावरण बनाने में जुटे हैं। भड़‌काऊ व उत्तेजक विचारों के सैकड़ों नहीं हज़ारों उदाहरण हैं और उस पर तुर्रा यह कि भाजपा गृह युद्ध का माहौल बना रही है।

लोकतंत्र को राजनीतिक हिंसा से बचाना समय की आवश्यकता है।

गोविन्द वर्मा

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