निराश्रित गोवंश की समस्या: जिम्मेदारी किसकी ?


निराश्रित गोवंश (जिन्हें संवेदनहीन हृदय वाले आवारा पशु कहते हैं) की समस्या दिनों दिन गहरी होती जा रही है। आये दिनों समाचार‌ आते हैं कि अमुक स्थान पर निराश्रित सांड ने, अमुक व्यक्ति या महिला को मार डाला या घायल कर दिया। खेतों में घुसकर फसलों को उजाड़‌ने की खबरें भी चारों ओर से आती हैं। शहरों में मार्गों, सड़‌कों, चौराहों पर पसरे निराश्रित गोवंश दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण हैं।

समस्या के समाधान के लिए समाज, शासन-प्रशासन और विशेषकर नेताओं को ईमानदारी व सच्चाई के साथ सोचने करने की जरूरत है। समस्या का निदान ढूंढने के बजाय नेतागण निराश्रित पशुओं पर भी राजनीति करने पर उतारू हैं। जनसभा में सांड के घुसने पर समाजवादी नेताजी कहते हैं- बाबा जी आ गए। किसानों का मसीहा बनने की कतार में खड़े नेताओं का फार्मूला है कि निराश्रित पशुओं को थानों व तहसीलों में घुसा दो, समस्या खुद सुलझ जाएगी।

यहां मुख्य प्रश्न यह हैं कि आखिर ये निराश्रित पशु खेतों में, रास्तों में कहां से आ गए? क्या ये आसमान से टपके हैं ? तीन-चार वर्ष पूर्व मैं अपने एक प्रिय मित्र के साथ उनके ईद मिलन दौरे पर पुरकाज़ी क्षेत्र में गया हुआ था। एक किसान, जो नेता भी था, उनसे बोला- “योगी ने अवैध बूचड़खानों पर रोक लगा कर मुसीबत खड़ी कर दी। बड़े होकर ये बछड़े सांड बनेंगे और खेतों को उजाड़ेगे, लोगों को खेत तक पहुंचने नहीं देंगे। आखिर पहले भी तो सब ठीक-ठाक चल रहा था।”

नेता ब्राँड किसान ने असलियत बयां कर दी थी। उसके इस कथन में बहुत कुछ छिपा है। योगी के शासन से पहले बछड़ों व दूध से भागी गायों को कसाइयों के हवाले कर दिया जाता था। यह असिलयत तो गोसेवक, गोशाला संचालक, तिलकधारी भी जानते थे लेकिन योगी से पहले इनके हाथ-पैर-मुंह बन्द रहे। गोशालाओं को और पशु-पालकों को, चाहे वे शहर के हों सिर्फ दुधारू पशुओं की दरकार है।

उत्तर प्रदेश शासन ने निराश्रित गोवंश के लिए प्रदेश भर में गोसंरक्षण केन्द्र, गोशालाएं स्थापित की हैं। प्रति पशु 900 रुपये अनुदान का भी निश्चय किया है। निराश्रित पशुओं को संरक्षण केन्द्र पहुंचाने का निर्देश दिया है लेकिन योगी जी के पास निराश्चित पशुओं के जमघट की समस्या से निपटने के लिए निकम्मी सरकारी मशीनरी व मतलबी मतदाताओं की बड़ी जमात भी है।
मोटा वेतन-भत्ता लेने वाले सरकारी अधिकारी कागज़ो का पेट भरने के अभ्यस्त हैं। गोवंश चाहे खेतों में भटके या शहर की सड़कों पर, उनकी जेब में पहली तारिख को मोटी तनख्वाह आ जाती है। और पशु पालक तो कृष्ण कन्हैया के कुनबे के हैं। उनका काम तो गोमाता का दूध पीना, मक्खन मलाई घी खाना और गायों के बछड़ों को छुट्टा छोड़ने भर का ही हैं। वे तो अपने इलाकों में गोवंश संरक्षण केन्द्र बनने में भी टांग अड़ाते हैं, जबकि वह सरकारी जमीन पर बनने वाला हो। गत वर्ष पुरकाजी क्षेत्र के अन्नदाता गोसंरक्षण केन्द्र न बनाने के लिये हडताल तक करने लगे थे।

निराश्रित पशु लोगों की जान ले रहे हैं। अभी 9 दिसंबर को ग्राम भंडूर में खेत में गन्ना छीलते 3 शख्सों पर सांड ने हमला कर दिया। सतीश सैनी नामक किसान की खेत में ही मृत्यु हो गई और दो महिलायें घायल हो गईं। यह तो मात्र एक ही हादसा है। ऐसी दुर्घटनायें रोजमर्रा होती हैं।

उत्तरप्रदेश के पशुधना एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह, जो मेरठ के प्रभारी मंत्री भी हैं, 9 दिसंबर को मेरठ आये थे। पत्रकारों ने निराश्रित पशुओं का प्रश्न उठाया तो मंत्री जी ने कहा कि शासन पालतू पशुओं का जिओ टैगिंग करा रही है। यदि ये पशु घूमते पाये गए तो पशुपालक के विरुद्ध कार्यवाही होगी।

सरकारी कार्यवाही का सफल होना भी एक जटिल समस्या है। बिजली चोर विद्युत विभाग के कर्मचारियों को पीट कर सीनाजोरी करते हैं। पशु कटान करने वाले और गोहत्यारे पुलिस टीम पर हमले करते हैं। नलकूप के मीटर उखाड़‌ने वाले सरकारी अमले से दंड बैठक कराते हैं। यह सरकारी अमले की स्थिति है। समस्या समाधान में कोई भी सहयोग देने को तैयार नहीं।

जो लोग गोवंश को समस्या मानते हैं वे वृन्दावन जाकर उस जर्मन महिला के से मिलें जो अपने नन्दी सदन में केवल बछड़ों और वृषभों का पालन करती है, लेकिन ऐसा कोई करेगा नहीं, क्यूंकि उन्हें गोमाता की सिर्फ जय बोलनी है और इन्हें या तो बछड़ों को जिबहखाना भेजता है या थानों में।

गोविन्द वर्मा

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