पं. सुन्दरलाल- हमें जिन्हें नहीं भूलना था !

26 सितंबर: आज पं. सुन्दरलाल का जन्मदिवस है। वे पं. सुन्दरलाल जो 26 सितंबर 1885 को मुज़फ्फरनगर के खतौली कस्बे में जन्में। जिन्होंने क्रान्तिकारिता और प्रखर लेखनी के बल पर शक्तिशाली ब्रिटिश राज का अजेय माना जाने वाला सिंहासन हिला दिया था। उनके पिता तोता राम श्रीवास्तव खतौली के मौहल्ला इमलीतला में रहते थे। अब सारा नक्शा बदल चुका है। पुश्तैनी मकान मनोहर कुटी तो सन् 1916 में ही बिक चुका था। अब वहां की पहचान घंटाघर से होती है लेकिन क्रान्तिकारी व्यक्तित्व के विषय में खतौली के ही नहीं, जिला मुजफ्फरनगर के अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं।

मुज़फ्फरनगर से हाई स्कूल पास करने के बाद पं. सुन्दरलाल ने कम आयु में ही खतौली छोड़ दी थी। शिक्षा व राजनीति का गढ़ कहे जाने वाले शहर प्रयागराज (इलाहाबाद) में पढ़ाई व आजादी के आन्दोलन में सक्रिय हुए। अपनी असाधारण विद्वता और अध्ययन-शीलता के कारण कायस्थ होते हुए भी पंडित कहलाये। ब्रिटिश सत्ता के अत्याचारों व काली करतूतों से आहत पं. सुन्दरलाल गदर पार्टी में शामिल हुए। सचिन्द्रनाथ सान्याल के साथ बम बनाते समय घायल हो गए थे। 8 बार जेल गये। लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष (महर्षि अरविन्दो), लोकमान्य तिलक आदि दिग्गज नेताओं के संपर्क में रहे।

स्वराज एवं कर्मवीर के संपादक बने। लगभग 50 पुस्तकों की रचना की जिनमें ‘हाऊ इंडिया लॉस्ट हर फ्रीडम’, ‘गीता एंड कुरान’, ‘हज़रत मौहम्मद एंड इस्लाम’ जैसी विचारोत्तेजक पुस्तकों ने समाज को नई चेतना दी किन्तु 18 मार्च,1929 को रामरख सहगल के चाँद प्रेस से छपी उनकी पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ ने पूरे भारत और इंग्लैंड तक जलजला ला दिया। पुस्तक के बाजार में आने के पाँचवें दिन ब्रिटिश सरकार ने इसे जब्त कर लिया।

‘भारत में अंग्रेजी राज’ पुस्तक खुद में एक इतिहास है। पुस्तक में 1661 ई. से 1875 तक के कालखंड का प्रामाणिक इतिहास है। कैसे अंग्रेजों ने कुटिलता से भारत में फूट डालो और राज करो की नीति चला कर भारत को तबाह किया। पुस्तक में अंग्रेज अधिकारियों के पत्रों के उद्धरणों से ब्रिटिश राज के काले कारनामों को प्रमाणित किया गया था। पुस्तक में इस सच्चाई को उजागर किया गया कि ईस्ट इंडिया कम्पनी भाड़े के लेखकों से मनघडंत इतिहास लिखवाती थी।

उत्तर प्रदेश शासन की मासिक पत्रिका ‘उत्तरप्रदेश’ ने जनवरी-अप्रैल 2023 में पत्रिका का ‘जब्तशुदा साहित्य विशेषांक’ प्रकाशित किया है, जिसमें पं. सुन्दरलाल कृत ‘भारत में अंग्रेजी राज’ के इतिहास के विषय में कुमार वीरेन्द्र, राजगोपाल सिंह वर्मा, सुधीर विद्यार्थी के सारयुक्त लेख छपे हैं। अतिथि संपादक विजय राय ने विशेषांक में सामग्री के चयन, संपादन की उत्कृष्टता से इसे संग्रहणीय बना दिया है। आज की पीढ़ी को लाज़िम हैं कि वह पं. सुन्दरलाल की पुस्तक व उनके जीवन दर्शन से अवश्य परिचित हो।

जन्मदिन पर महान् क्रान्तिकारी पत्रकार व लेखक पं. सुन्दरलाल के संबंध में कुछ बातों का उल्लेख करता चाहूंगा। पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संपादक “देहात”) ने मुझे बताया था कि एक बार लाला लाजपत राय पंडित जी के घर पर (इलाहाबाद में) टिके थे। रात्रि को देर तक लाला जी कुछ लिखते रहे। सवेरे उनके लिए भोजन लाया गया तो पं. सुन्दरलाल ने कहा- ‘क्या पूजा नहीं करेंगे?’ लालाजी ने कहा- ‘मूर्ख सुन्दरलाल, मैं रात भर क्या पूजा नहीं कर रहा था? यह कर्म (लेखन) ही मेरी पूजा है।’ यह बात पिताश्री को स्वयं पं. सुंदरलाल ने बताई थी।

उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग में उप निदेशक रहे तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केशव गुप्त (पूर्व एम.एल.ए.) के पुत्र अरुण गुप्ता ने स्वाधीनता की 50वीं वर्षगांठ पर मुजफ्फरनगर के स्वाधीनता सेनानियों के संबंध में एक कुश्ती का संपादन किया था, उनके साथ मैं भी सहयोगी था। तब मैं अरुण जी के साथ खतौली गया था और उस मकान की तलाश की थी जहां क्रान्तिकारी लेखक ने जन्म लिया। यह देख कर क्लेश हुआ कि खतौली के कुछ पत्रकारों व बुद्धिजीवियों को छोड़, पं. सुन्दरलाल के विषय में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं थी। एक बार खतौली के कुन्द-कुन्द डिग्री कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. पवन कुमार जैन ने पं. सुन्दरलाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गंभीरता से मेरा वार्तालाप हुआ था। मुझे याद आ रहा है कि डॉ. कमल सिंह ने सनातन धर्म महाविद्यालय में पं. सुन्दरलाल का अभिनन्दन समारोह आयोजित किया था। शायद 1978 में। तभी उनके दर्शन का सौभाग्य मिला। हिन्दू मुस्लिम एकता पर जमकर बोले थे। पं. सुन्दरलाल और बाबा नागार्जुन के मैंने एस.डी.कालेज सभागार में दर्शन किए थे। तन और मन से दोनों एक ही से दिखे थे।

जैसा कि भारत में होता है- विद्वान, दार्शनिक और चिन्तक मुफलिसी और गुमनामी में मरता है। अरुण गुप्ता जी ने मुझे बताया था कि जीवन के अंतिम पहर में वे दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में अपने एक मुस्लिम मित्र के छोटे से कोठरीनुमा मकान में रहते थे। 9 मई 1981 को उनका निधन हो गया। अरुण गुप्ता जी ने एक रहस्यपूर्ण किन्तु अविश्वसनीय सी लगने वाली बात मुझे बताई। उनके अनुसार 1962 का भारत-चीन युद्ध पं. नेहरू के आक्रमक रवैये के कारण हुआ था। बहरहाल यह तो सच है कि पं. सुन्दरलाल दो चीजों के बहुत कायल थे। एक, हिन्दू‌-मुस्लिम सौहार्द्र, दूसरे, भारत-चीन में दोस्ती।

उनके पिता तोताराम श्रीवास्तव मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले थे और खतौली में सरकारी मुलाजिम थे। पं. सुन्दरलाल खतौली में जन्मे। कम से कम खतौली में तो उनकी कोई यादगार होनी ही चाहिये थी। पत्रकार भाई सतेन्द्र आर्य ने बताया कि नरेश पालीवाल ने अपने पालिकाध्यक्ष काल में पं. सुन्दरलाल की स्मृति में एक पुस्तकालय स्थापित कराया था, उसे पुलिस उपाधीक्षक का कार्यालय बना दिया गया है। घंटाघर के पास पं. सुन्दरलाल मार्ग का पत्थर लगाया गया था, उस पर धूल जम चुकी है।

इतनी महान शख्सियत के प्रति इतना आदरभाव तो होना ही चाहिए कि समस्त साहित्य नहीं तो कम से कम ‘भारत में अंग्रेजी राज’ की प्रतियां समस्त विद्यालयों के पुस्तकालयों में उपलब्ध कराई जाएं। पं. सुन्दर लाल इसके हक़दार तो बनते ही हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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