राहुल की गीदड़ भभकी !

आखिरकार राहुल गांधी ने अपने मन की बात कह ही दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘कायर’ बताते हुए राहुल ने कहा कि यदि वे प्रधानमंत्री होते तो पंद्रह मिनट में चीनी सेना को कब्जाए गए भारतीय भूभाग से निकाल बाहर करते। यानी जो काम उनके परनाना जवाहर लाल नेहरू नहीं कर पाये, उनकी दादी इंदिरा गांधी नहीं कर पाई, उनके पिता राजीव गांधी नहीं कर पाये, उनकी माताश्री सोनिया गांधी के कठपुतले प्रधानमंत्रीगण नहीं कर पाये, वह काम वे यानी राहुल गांधी महज़ पंद्रह मिनट फूंक मार कर चीनी सेना को 100 किलोमीटर दूर उड़ा देंगे।

दुनिया जानती है कि कठोर वास्तविकताओं से अनभिज्ञ कल्पना लोक में विचरण करने वाले विश्व का शांतिप्रिय नेता सिद्ध करने की होड़ में लगे जवाहर लाल नेहरू ने अपनी मूर्खतापूर्ण नीतियों के कारण पर पहले तिब्बत पर चीनी कब्जे को मान्यता दी, फिर 1962 में चीनी हमले में हज़ारों किलोमीटर भारतीय भूभाग पर कब्जा करा दिया। नेहरू की मूर्खता, कायरता और निकम्मेपन की वजह से चीन ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा करा हुआ है जो दक्षिण कोरिया के समस्त रकबे के बराबर है।

पंडित नेहरू ने वी.के कृष्णमेनन जैसे नशेड़ी व चीन परस्त व्यक्ति को भारत का रक्षा मंत्री बनाये रखा जबकि मेनन जनरल के.एस थिमैया, जनरल पी.एन थापर आदि को अपमानित करते रहे। भारत की ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में गोला-बारूद, हथियार बनाने के बजाय तशले, फावडे व बेलचे बनाये जाने लगे। मेनन ने वरिष्ठ एवं योग्य सैन्य अधिकारियों के परामर्श की अवहेलना कर पं. नेहरू के रिश्तेदारों चौथी कोर के कमांडर बी.जी कौल, लेफ्टिनेंट जनरल बी.एम कौल को ज़िम्मेदारियां सौंपी। यहां तक कि 1959 में चीन द्वारा कोंग्का ला में भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद भी नेहरू व मेनन नहीं चेते और 1962 के हमले के बाद नेहरू के रिश्तेदार ले. जनरल बी.एम कौल को पूर्वोत्तर के कमांडर के रूप में चीन से निपटने का गुरूतर भार सौंप दिया गया। जनरल कौल को युद्ध का कोई अनुभव नहीं था। वे नेहरू व मेनन की चमचेबाजी में ही लगे रहते थे। जब बोमडिला आदि क्षेत्र भारत के हाथों से निकल गए तो भारतीय सैनिकों ने उन्हें नजरबंद कर दिया। जनरल कौल बीमारी का बहाना बनाकर नेफा से भाग आए और कथित तौर पर मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित अपने बंगले से युद्ध का कथित संचालन करते रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने नेहरू को मेनन व जनरल कौल की नालायकी पर कड़ी फटकार लगाई थी।

नेहरू के प्रशंसक रामधारी सिंह दिनकर उनकी चीनी नीति व भारत की पराजय से बहुत खिन्न थे। राहुल गांधी यदि हिंदी पढ़ते हो तो दिनकर जी की ये पंक्तियां जरूर पढ़े और तब कहें कि कायर कौन है- नेहरू या मोदी:

घातक है, जो देवता सहस्य दिखता है,
लेकिन कमरे में ग़लत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं, गोत्र प्यारा है,
समझो उसने ही हमें यहां मारा है।
जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के वश मूक रहता है।
उस कुटिल राजतंत्री कदर्य को धिक्र है,
यह मूक सत्य हंता कम नहीं, अधिक है।

वंशवाद की विषबेल पर प्रहार होने से राहुल उन्मत्त व्यक्ति की तरह अनाप-शनाप जो मुंह में आता है, बक देते हैं। उन्हें देश को बताना होगा कि जो काम उनके पुरखे 15 घंटे, पंद्रह साल या पचास वर्षों में भी नहीं कर पाये उस काम को वे 15 मिनट में कैसे कर देंगे और क्या 2008 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी तथा कांग्रेस के बीच चीन को भारतीय सीमा से 180 किलोमीटर दूर तक खदेड़ने के लिए यह समझौता हुआ था। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि डोकलाम विवाद के समय वे अपनी बहन-बहनोई व अपने भांजे व भांजी को साथ लेकर चीनी राजदूत के घर दावत खाने क्यों पहुंचे थे। क्या उन्होंने चीनी चाउमीन खाते समय पंद्रह मिनट के भीतर भारत की जमीन से अवैध कब्जा हटाने की वार्निंग चीन के राजदूत को दी थी? यह बात तो चीन की दावत खाने के बाद राहुल को फौरन बतानी चाहिए थी। कोरी गाल बजाई कर के वे थोड़ी देर अपने चमचों से हथेलियां पिटवा सकते हैं लेकिन चीन जैसे शैतान से निबटने की कूवत न उनके पुरखों में थी न ही उनमें है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here