कांग्रेस से अलग होने के बाद कैप्टन की सियासी राह ज्यादा मुश्किल नहीं होने वाली है। इसकी बड़ी वजह उनके प्रति किसान नेताओं की हमदर्दी और सूबे का 52 साल का लंबा सियासी सफर। बड़ी बात यह भी रहेगी कि पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से किसानों की प्रभाव वाली 77 सीटों पर भी कैप्टन सीधा असर डालेंगे।
कृषि कानूनों को लेकर भी किसानों के बीच केंद्र के साथ मध्यस्थता कराकर कैप्टन दोहरा लाभ लेने की कोशिश करेंगे। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अब कैप्टन ने सियासी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात कर उन्होंने अपने विरोधियों को इस बात का तो एहसास करा ही दिया है कि वह पंजाब की सियासत के बड़े खिलाड़ी हैं।
कृषि कानूनों को लेकर पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे पंजाब के 32 किसान सगंठनों के नेताओं की हमदर्दी कैप्टन को और भी मजबूत कर रही है। इन सबके बीच अगर कैप्टन भाजपा नेताओं के साथ मिलकर कृषि कानूनों पर किसान आंदोलन को समाप्त करने में सफल रहते हैं तो वह पंजाब की सियासत का रुख बदलकर रख देंगे। उनकी पहचान पार्टियों से बढ़कर व्यक्ति के रूप में कहीं ज्यादा हो जाएगी।
फिलहाल कैप्टन को लेकर कयास यह लगाए जा रहे हैं कि वह एक ऐसा संगठन बनाएंगे जो गैर राजनीतिक हो। संभावना यह भी जताई जा रही है कि वह पहले से बनाई गई जाट महासभा को भी सक्रिय कर सकते हैं।
कैप्टन को किसान खिला चुके हैं लड्डू
एक ओर जब किसान नेता शिअद सहित दूसरे राजनीतिक दलों का विरोध कर रहे हैं तो वहीं कैप्टन को किसान नेता लड्डू खिला चुके हैं। किसान नेताओं के इस प्यार की बड़ी वजह यह भी है कि बुरे वक्त में कैप्टन हमेशा ही किसानों के साथ डटकर खड़े रहे। पंजाब की धरती पर जन्मे किसान आंदोलन को कैप्टन ने हमेशा ही सहयोग किया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ ही कैप्टन किसानों के लिए केंद्र से भी कई बार भिड़ चुके हैं।