खबरें तो बहुत हैं – पार्थ चटर्जी व उनकी महिलामित्रों के शाही ठाठ, लूट खसोट, बड़बोले संजय राउत की हिरासत, आतंकी सरगना अल जवाहिरी की काबुल में मौत, नेशनल हैराल्ड कार्यालयों पर छापे जैसी सनसनीखेज खबरों पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है किंतु हम दिन ब दिन मानवीय संवेदनाओं के क्षरण के कारण हो रहे दर्दनाक घटनाक्रम पर कुछ कहना चाहेंगे।
पानीपत से एक दिल दहलाने वाला समाचार है। कुंडली-मानेसर-पलवल मार्ग पर किसी वाहन ने एक राहगीर को टक्कर मार दी। सड़क पर गिरे व्यक्ति पर रात भर वाहन दौड़ते रहे। संवेदहीन चालकों ने इतने वाहन उस पर चढ़ा दिए कि उसके अंगों का ही पता नहीं चला। कपड़ों से पता चला कि किसी शख्स को कुचल डाला गया। न तो संवेदनहीन गाड़ी चालकों ने, और न ही पुलिस ने जरूरी समझा कि देख लें उसमें कुछ सांसे बाकी हैं या नहीं। इस मार्ग पर रात्रि में पुलिस पेट्रोलिंग की व्यवस्था है। उसकी भी पोल खुल गई किंतु राई थाने के एसएचओ देवेंद्र शर्मा ने दावा कर दिया कि रात्रि में पुलिस पेट्रोलिंग होती हैं।
दूसरी घटना पानीपत के गुड़मंडी इलाके की है। यहां 80 वर्षीय रामनिवास जिंदल व 65 वर्षीय पत्नी सरला रहते थे। 2 दिनों तक घर का दरवाजा भीतर से बंद रहा। मौहल्लावासियों या श्री जिंदल के नाते रिश्तेदारों ने कोई खैरखबर नहीं ली। जब घर से भीषण दुर्गंध आने लगी तो दरवाजा तोड़ा गया। बाथरूम के पास रामनिवास का सड़ा गला शव पड़ा था और सरला जिंदल औंधे मुंह बेहोश पड़ी थी। उसकी सांसे जरूर चल रही थीं। मानव अधिकार संघ के लोगों ने सरला को अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों का कहना है कि रोगग्रस्त पति-पत्नी को 10-12 दिनों से भोजन पानी नहीं मिला था।
एक घटना प्रयागराज (इलाहाबाद) की है। ग्राम रामपुर निवासी बजरंगी यादव के 12 वर्षीय बेटे की अस्पताल में मृत्यु हो गई। शव को गांव ले जाने को एंबुलेंस वाले ने 2000 से अधिक रूपये मांगे, जो उसके पास नहीं थे। वह बेटे के शव को पीठ पर लादकर गांव को चल पड़ा। पंद्रह कि.मी चलने पर सेना के वाहन ने उसे देखा तो सैनिकों ने उसे गांव तक पहुंचाया।
इस प्रकार की हृदय विदारक घटनायें प्रायः होती रहती हैं। देश में बुलेट ट्रेन चलाई जा रही है, सैकड़ों हवाई अड्डे बन रहे हैं। वोटों की खातिर नेता लोगों को जाट, यादव, बनिया, ब्राह्मण के आधार पर गोलबन्द करते हैं किंतु जनता की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करने या सड़ीगली सरकारी कार्यप्रणाली को सुधारने की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
ये मन को झगझोरने वाली घटनायें दूषित हो चुकी व्यवस्था की ओर संकेत करती हैं किंतु इन्हें देखने-समझने और व्यवस्था में सुधार करने को कोई तैयार नहीं।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’