देवबंद से सपा-रालोद गठबंधन ने कार्तिकेय राणा को बनाया उम्मीदवार

सहारनपुर:  प्रतीक्षा की घड़ियां खत्म हुईं और गुरुवार को देवबंद सीट पर सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में युवा नेता कार्तिकेय राणा के नाम पर मुहर लग गई। हालांकि, पार्टी स्तर से आधिकारिक घोषणा बाकी है। लेकिन, कार्तिक समर्थकों में भारी उत्साह देखा गया। फिलहाल, देवबंद में भाजपा ने भी ठाकुर बिरादरी से कुंवर ब्रजेश सिंह पर दांव लगाया है।

यह बताने की जरूरत नहीं कि हर चुनाव में लगभग सभी दलों की निगाहें देवबंद पर होती हैं। इस सरजमीं ने बड़े सियासतदां पैदा किए हैं। जहां तक कार्तिकेय की बात है तो वह पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजेंद्र सिंह राणा के बेटे हैं।

कार्तिकेय की उच्च शिक्षा लंदन से जरूर हुई है पर वह जमीनी नेता माने जाते हैं। ब्लाक प्रमुखी के चुनाव में प्रशासनिक अधिकारियों ने उन पर जमकर अत्याचार किया था। इसलिए उ्ननके पक्ष में सहानुभूति की लहर भी है।

कई तरह के समीकरणों को ध्यान में रखकर और बहुत ठोक-बजाकर सपा मुखिया ने कार्तिक को हरी झंडी दी है। बता दें कि देवबंद सीट पर पूर्व विधायक माविया अली भी दावेदारी कर रहे थे। बहरहाल, अब पिक्चर साफ हो गई है।

देवबंद में कुल 3, 47, 527 मतदाता हैं। इसमें 1, 85,901 पुरुष जबकि 1, 61, 611महिला मतदाता हैं। अगर अतीत के व्यतीत को देखें तो सन 1952 से लेकर 2017 तक चुनावों का लब्बोलुआब ये रहा है कि यहां ठाकुर बिरादरी के ही ज्यादातर विधायक चुने गए हैं।

केवल तीन दफा ही ऐसा रहा जबकि गैर राजपूत बिरादरी के विधायक चुने गए। सन 2016 के विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में माविया अली ने देवबंद सीट पर जीत दर्ज की। इसके पहले सन 2007 के विधान सभा चुनाव में बसपा के टिकट पर गुर्जर बिरादरी के मनोज चौधरी ने सपा उम्मीदवार राजेंद्र सिंह राणा को परास्त किय था।

थोड़ा और पीछे मुड़कर देखें तो सन 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर मैदान मेंं उतरे मौलवी उस्मान ने ठाकुर महावीर सिंह को हराकर गैर राजपूत के रूप में देवबंद का प्रतिनिधित्व किया था। बाकी हर दफा इस सीट पर राजपूतों का ही दबदबा रहा।

इसी सीट पर तीन बार ठाकुर फूल सिंह ने विजय हासिल की। फूल सिंह ने 1952, 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में भी मैदान मार लिया था। इनके तीन बार के रिकार्ड को छूने में सफल रहे थे ठाकुर महावीर सिंह। महावीर सिंह ने 1969, 1980 और 1985 में भी कांग्रेस के टिकट पर लड़कर चुनाव जीते थे।

1957 में निर्दलीय यशपाल सिंह ने भी जीत दर्ज की। बहरहाल, अब कार्तिकेय राणा के मैदान में उतरने से जंग काफी रोचक हो गई है। कांग्रेस ने अभी यहां अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।

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