भारत को पीटी उषा (PT Usha) जैसी उड़नपरी देने वाले द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच ओएम नांबियार (OM Nambiar) का गुरुवार को निधन हो गया. वह 89 साल के थे. लंबे इंतजार के बाद इसी साल उन्हें पद्म श्री अवॉर्ड दिया गया था. वहीं 1984 के लॉस एंजेलेस ओलिंपिक में पीटी उषा के प्रदर्शन के बाद 1985 में उन्हें द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया गया था.
पीटी उषा के अलावा नांबियार ने शाइनी विल्सन को भी कोचिंग दी थी जिन्होंने चार ओलिंपिक में हिस्सा लिया. उन्होंने 1985 के एशियन चैंपिनशिप में 800 मीटर में गोल्ड मेडल जीता था. वहीं वह देश की दिग्गज एथलीट रही वंदना राव के भी कोच रहे. उन्होंने 1968 में एनआईएस पटियाला से कोचिंग में डिप्लोमा किया और 1971 में केरल खेल परिषद से जुड़े थे.
अपनी सबसे मशहूर शिष्या उषा को ओलिंपिक पदक दिलाना उनका सबसे बड़ा सपना था हालांकि 1984 में लॉस एंजेलेस ओलिंपिक में वह मामूली अंतर से कांस्य से चूक गई. हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जब मुझे पता चला कि 1984 ओलिंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में उषा एक सेकंड के सौवें हिस्से से पदक से चूक गई तो मैं बहुत रोया. मैं रोता ही रहा. उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता. उषा का ओलिंपिक पदक मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था.’
इस साल 35 साल के लंबे इंतजार के बाद जब उन्हें पद्म श्री के लिए चुना गया तो उन्होंने कहा, ‘मेरे शिष्यों के जीते हर पदक से मुझे अपार संतोष होता है. द्रोणाचार्य पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ एशियाई कोच का पुरस्कार और अब पद्मश्री मेरी मेहनत और समर्पण का परिणाम है.’
केरल के कन्नूर में पय्योली के पास एक छोटे से गांव में जन्मे (संयोग से पीटी उषा का जन्म स्थान भी यही है) नांबियार ने अपने कॉलेज के दिनों में एक चैंपियन एथलीट थे. उनके कॉलेज के प्रिंसिपल ने नांबियार को सेना में जाकर एथलेटिक्स में करियर आगे बढ़ाने की सलाह दी. तमाम कोशिशों के बाद भी वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाए. ऐसे में उन्होंने एथलीट के रूप में अपने करियर को खत्म करते हुए कोचिंग का रास्ता चुना.
नांबियार अपने सपनों को उनके द्वारा तैयार की प्रतिभाओं के माध्यम से पूरा करना चाहते थे. कोचिंग डिप्लोमा के बाद केरल में खेल को लेकर काम करने के लिए पहचाने जाने वाले जी वी राजा ने उन्हें राज्य के एथलीटों को प्रखर बनाने के लिए केरल आने का आमंत्रण दिया. 1970 में उन्होंने केरल खेल परिषद में कोच के रूप में कार्यभार संभाला. यहीं 1976 में उन्हें पीटी उषा मिली और दोनों का सफर शुरू हुआ.