बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान 35 लाख नाम लापता, चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर उठे सवाल

बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पहले चरण में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। राज्य में लगभग 35 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब पाए गए हैं। यह जानकारी सामने आने के बाद मतदाता सूची की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। साथ ही इस प्रक्रिया को लेकर देशभर में चुनाव आयोग की भूमिका पर भी बहस छिड़ गई है।

चुनाव आयोग द्वारा राज्य में मतदाता सूची के अद्यतन और सत्यापन के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, ये 35 लाख मतदाता या तो अपने पंजीकृत पते से स्थायी रूप से अन्यत्र चले गए हैं या फिर उनका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इस आधार पर अब इन नामों को सूची से हटाने की तैयारी की जा रही है। राजनीतिक दलों का कहना है कि यह गंभीर प्रशासनिक खामी की ओर इशारा करता है, जो मतदाता पंजीकरण की पूरी प्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

चुनाव आयोग ने दी प्रक्रिया की कानूनी और संवैधानिक व्याख्या

चुनाव आयोग ने 24 जून को स्पष्ट किया था कि संविधान और कानून के तहत मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है। आयोग ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता सूची नियम, 1960 का हवाला देते हुए कहा है कि योग्य मतदाताओं की पहचान और फर्जी या अपात्र नामों को हटाना आवश्यक है ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सके।

एसआईआर को लेकर उठ रहे हैं राजनीतिक और कानूनी सवाल

एसआईआर प्रक्रिया 25 जून से 26 जुलाई 2025 तक चल रही है। इसका उद्देश्य दोहराव, अपात्रता और गलत पते पर दर्ज मतदाताओं को हटाकर सूची को दुरुस्त करना है। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को लेकर चिंता जताई है। उनका आरोप है कि यह केवल मतदाता सूची सुधार की आड़ में नागरिकता की जांच की एक अप्रत्यक्ष प्रक्रिया बनती जा रही है, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों का मतदान अधिकार छिन सकता है।

आयोग का दावा: नाम हटना नागरिकता खत्म होने जैसा नहीं

चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से हटने का अर्थ उसकी नागरिकता समाप्त होना नहीं है। आयोग ने यह भी कहा कि यदि जरूरत पड़ी, तो वह कानून के तहत नागरिकता संबंधी दस्तावेज मांग सकता है, ताकि मतदाता के अधिकार की पुष्टि हो सके। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया पूरी तरह से संवैधानिक और कानूनी दायरे में की जा रही है।

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