बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट बंटवारे को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। इस बार सबसे बड़ी चुनौती लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ तालमेल को लेकर सामने आई है। पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान सीटों की संख्या और चयन को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व और चिराग के बीच कई दौर की बातचीत अब तक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकी है। बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और प्रदेश प्रभारी विनोद तावड़े से भी चिराग का सीधा संवाद फिलहाल रुका हुआ है। ऐसे में स्थिति को संभालने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप किया है। बताया जा रहा है कि शाह के दखल के बाद कुछ हद तक गतिरोध टूटा और चिराग से धर्मेंद्र प्रधान की बातचीत भी हुई।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रवक्ता धीरेंद्र मुन्ना ने कहा कि सीटों के बंटवारे पर अभी औपचारिक चर्चा नहीं हुई है। उन्होंने यह भी जोड़ा, “फोन आउट ऑफ रीच हो सकता है, लेकिन हमारे नेता हमेशा रीच में हैं।”
चिराग पासवान करीब 40 सीटों की मांग पर अड़े हैं, जिनमें गोविंदगंज, ब्रह्मपुर, अतरी, महुआ और सिमरी बख्तियारपुर जैसी सीटें शामिल हैं। इनमें से तीन सीटों पर जदयू भी दावा छोड़ने को तैयार नहीं है, जिससे बातचीत और पेचीदा हो गई है। भाजपा का मानना है कि चिराग की मांग व्यावहारिक नहीं है, लेकिन उनकी उपेक्षा करना भी संभव नहीं, क्योंकि दलित और युवा मतदाताओं के बीच उनका प्रभाव अहम माना जाता है।
वर्ष 2020 के चुनाव में लोजपा ने गठबंधन से अलग राह चुनी थी, जिससे जदयू को भारी नुकसान हुआ था। भाजपा इस बार ऐसी स्थिति दोहराने से बचना चाहती है। पार्टी नेतृत्व की कोशिश है कि सभी सहयोगी दलों को साथ लेकर चुनावी एकजुटता बनाए रखी जाए।
इस बीच, पटना में लगे ‘अगला मुख्यमंत्री – चिराग पासवान’ वाले पोस्टरों ने राजनीतिक हलचल और बढ़ा दी है। जहां जदयू खुद को गठबंधन का “बड़ा भाई” मानने पर अडिग है, वहीं भाजपा को संतुलन साधना चुनौतीपूर्ण हो गया है। फिलहाल, यह तय माना जा रहा है कि एनडीए में सबसे कठिन बातचीत का दौर लोजपा (रामविलास) के साथ ही है।
हालांकि अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि बातचीत आगे बढ़ेगी, लेकिन एनडीए के भीतर तालमेल की यह राह अभी लंबी और जटिल नजर आ रही है।