पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए मंगलवार को मतदान होने वाला है। रविवार को इस चरण के लिए चुनाव प्रचार का शोर पूरी तरह थम गया। इस बार की निगाहें खास तौर पर दलित और मुसलमान मतदाताओं पर टिकी हैं। इस चरण में 18 प्रतिशत दलित वोटर हैं, जो लगभग सौ सीटों के नतीजों का संतुलन बदलने की ताकत रखते हैं। इसके अलावा सीमांचल समेत तीन दर्जन सीटों पर मुसलमान मतदाताओं की भूमिका भी निर्णायक मानी जा रही है।

पिछली बार की तुलना में इस चुनावी माहौल में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। राजग के साथ पिछली बार गठबंधन में रही वीआईपी इस बार महागठबंधन के साथ है, जबकि चिराग पासवान खुद चुनाव लड़ते हुए एनडीए को मजबूत करने में जुटे हैं। इसके अलावा एआईएमआईएम और नई जनसुराज पार्टी भी मुसलमान मतदाताओं का समर्थन पाने की कोशिश में लगी हैं।

बीते चुनाव में एनडीए को महागठबंधन के मुकाबले 1.6 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे, जिससे राजग को 66 सीटें मिली थीं, जबकि महागठबंधन 49 सीटों पर सिमट गया था। इस बढ़त की बदौलत राजग अंग प्रदेश, तिरहुत और मिथिलांचल में आगे रहा, जबकि राजद को मगध क्षेत्र में मजबूत बढ़त मिली थी। सीमांचल में एआईएमआईएम की मौजूदगी के चलते राजग को मामूली बढ़त मिली थी।

इस चरण में दलित मतदाता सबसे अहम माने जा रहे हैं। कुल 18 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले दलित वोटरों में 13 प्रतिशत महादलित और 5 प्रतिशत पासवान बिरादरी शामिल हैं। लगभग सौ सीटों पर दलित वोटर 30-40 हजार की आबादी रखते हैं। एनडीए का मानना है कि चिराग और जीतन राम मांझी के साथ आने से पासवान और मुसहर बिरादरी के 7.5 प्रतिशत वोट उनके पक्ष में आ सकते हैं।

सीमांचल में मुसलमान मतदाताओं में नेतृत्व के लिए नई मांगें दिख रही हैं। एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीटों पर सभी उम्मीदवार इसी समुदाय से उतारे हैं, जबकि नई जनसुराज पार्टी भी मुस्लिम वोटरों का समर्थन पाने के लिए समान रणनीति अपना रही है। यह चरण बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि दलित और मुसलमान वोटर यहां नतीजों को तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।