बिहार में इन दिनों चल रही मतदाता सूची के सत्यापन प्रक्रिया (वोटर लिस्ट वैरिफिकेशन) पर सवाल खड़े हो गए हैं। भारत निर्वाचन आयोग का दावा है कि राज्य में अब तक लगभग 80.11% मतदाता सत्यापन का कार्य पूरा हो चुका है और यह प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। लेकिन पटना के एक प्रतिष्ठित क्षेत्र से सामने आए एक मामले ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।

बिना आए ही कर दिया सत्यापन!

पटना निवासी एक व्यक्ति ने अपने मतदान केंद्र (बूथ संख्या 779) पर जाकर वोटर लिस्ट वैरिफिकेशन की जानकारी लेनी चाही, तो उन्हें चौंकाने वाली स्थिति का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि उनके, उनकी पत्नी और उनके पिता के नाम तो सही बूथ पर दर्ज थे, लेकिन उनकी मां का नाम पास के ही दूसरे बूथ में दर्ज पाया गया। जब उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के वैरिफिकेशन फॉर्म निकाले, तो पाया कि फॉर्म पहले से ही पूरी तरह भरे हुए हैं—यहां तक कि उन पर पूर्व-हस्ताक्षर भी मौजूद थे।

अधिकारियों पर पक्षपात और दबाव डालने का आरोप

विवाद तब गहरा गया जब संबंधित व्यक्ति ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई और फॉर्म पहले से भरे होने पर सवाल उठाए। इसके जवाब में मौके पर मौजूद निर्वाचन आयोग के अधिकारी और बूथ लेवल अधिकारी (BLO) ने उलटे उन्हें ही डांट-डपट शुरू कर दी। शिकायतकर्ता का कहना है कि अधिकारियों ने उनसे कहा, “आप चुपचाप फॉर्म पर नाम लिखें और जमा करें, समाज सुधारक बनने की जरूरत नहीं है।”

आयोग को भेजे साक्ष्य

आक्रोशित व्यक्ति ने इस पूरे घटनाक्रम से संबंधित फोटो और वीडियो सबूत निर्वाचन आयोग को ईमेल के माध्यम से भेजे हैं और निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट वैरिफिकेशन जैसे संवेदनशील कार्य में इतनी लापरवाही स्वीकार्य नहीं है। अगर ऐसे ही बिना व्यक्ति की उपस्थिति के सत्यापन किया जा रहा है, तो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।