अररिया: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद अब केवल तीन दिन बचे हैं और राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों तथा घोषणापत्रों में जनता के असली मुद्दों और राजनीतिक विमर्श के बीच एक स्पष्ट अंतर दिखाई दे रहा है।
सत्ता की दौड़ में शामिल प्रमुख गठबंधनों ने जंगलराज, एसआईआर और वोट चोरी जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी है। वहीं, आम लोग रोज़गार, पलायन, बाढ़ और सरकारी भ्रष्टाचार पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। राजनीतिक दल भी इसे समझते हुए अपने घोषणापत्र में इन मुद्दों का उल्लेख कर रहे हैं। दूसरे और अंतिम चरण का मतदान 11 नवंबर को होने वाला है।
मतदाताओं की राय:
रक्सौल के पास आदापुर के युवा नीरज कुमार सिंह और रीतेश प्रसाद का कहना है कि उन्हें बड़े शहरों में एक कमरे में आठ-दस लोगों के साथ रहना और वहीं खाना बनाना पसंद नहीं है। यदि उनके अपने इलाके में कम वेतन पर रोजगार मिलता है, तो वे तैयार हैं। दोनों ने बताया कि वे छठ में घर आए हैं और मतदान के बाद फिर प्रवास पर चले जाएंगे। हालांकि, महागठबंधन और एनडीए के रोजगार वादों पर ज्यादा भरोसा नहीं करते।
बेरोजगारी के मुद्दे पर नाराजगी साफ नजर आई। राजग ने रोजगार देने का वादा किया है, जबकि महागठबंधन तीन करोड़ सरकारी नौकरियों का दावा करता है, जो अधिकांश लोगों को व्यवहारिक नहीं लग रहा। बेतिया के एमजेके कॉलेज के पास चाय पर चर्चा कर रहे युवा मयंक तिवारी ने कहा, “जंगलराज या एसआईआर की बातें अपनी जगह हैं, लेकिन यह हमारी बेरोजगारी दूर नहीं करता। नीतीश सरकार में सरकारी भर्ती कम होती हैं और जो होती हैं भी, पेपर लीक या अन्य कारणों से प्रभावित हो जाती हैं, जिससे बाहर रोजगार के लिए जाना पड़ता है।”
बाढ़ और भ्रष्टाचार की चिंता:
जनता के बीच बाढ़ और सरकारी भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा है। चंपारण के रमगढ़वा इलाके में कोशी और महानंदा नदियों के बाढ़ प्रकोप से प्रभावित रहने वाले लोग कहते हैं कि वर्षों से सरकार स्थायी उपाय नहीं कर पाई है। 2024 में भी इलाके में भयंकर बाढ़ आई थी, लेकिन इस बार स्थिति सुरक्षित रही, जिसे वे दैवीय कृपा मानते हैं, न कि सरकारी व्यवस्था का परिणाम।
सरकारी भ्रष्टाचार को लेकर भी सभी वर्गों में समान चिंता है। अररिया, मधुबनी और मोतिहारी के लोग शिकायत करते हैं कि सरकारी योजनाओं और सेवाओं के लिए रिश्वत देना आम बात हो गई है। मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे साधारण मामलों में भी बिना रिश्वत काम नहीं होता। कुछ ने व्यंग्य करते हुए कहा कि इस भ्रष्टाचार में जाति का भेदभाव नहीं होता, यह लालू राज का तंज भी था।
इस तरह, चुनावी बयानबाजी और जनता की वास्तविक परेशानियों के बीच अभी भी खाई साफ दिख रही है।