बिहार विधानसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल न कर सकी जनसुराज पार्टी की चुप्पी आखिरकार टूट गई। पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने पटना में प्रेस वार्ता कर हार की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए साफ कहा कि जनता ने उन पर भरोसा नहीं किया और यह उनकी रणनीतिक चूक का नतीजा है। उन्होंने माना कि तीन साल के प्रयासों के बावजूद वे बिहार की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। इसके लिए उन्होंने राज्य की जनता से माफी भी मांगी।
किशोर ने घोषणा की कि वह भितिहरवा गांधी आश्रम में एक दिन का मौन उपवास कर प्रायश्चित करेंगे और जनसुराज के कार्यकर्ताओं से भी इस उपवास में शामिल होने की अपील की। उन्होंने कहा, “हमसे गलती हुई है, पर हमने कोई अपराध नहीं किया। न हमने जाति की राजनीति का ज़हर फैलाया, न वोट खरीदने की कोशिश की।” उन्होंने महाभारत के अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि वे लड़ाई से पीछे हटने वाले नहीं हैं और दोगुनी मेहनत के साथ फिर से शुरुआत करेंगे।
10 हजार रुपये और वोट खरीदने के आरोप पर प्रतिक्रिया
पीके ने चुनाव में 10 हजार रुपये देकर वोट प्रभावित करने के आरोपों पर कहा कि जनता अपने बच्चों का भविष्य इतनी मामूली रकम में नहीं बेच सकती। उनका आरोप था कि सरकारी मशीनरी ने एनडीए के पक्ष में यह संदेश फैलाया कि वोट देने पर दो लाख रुपये दिए जाएंगे और 10 हजार रुपये को एडवांस के रूप में बांटा गया। उनका दावा है कि सरकार ने विभिन्न योजनाओं के नाम पर लगभग 29 हजार करोड़ रुपये चुनाव से ठीक पहले खर्च किए।
उन्होंने सरकार से मांग की कि अगर वाकई 10 हजार रुपये रोजगार सहायता के लिए दिए गए थे, तो अब उन महिलाओं को दो लाख रुपये भी दिए जाएँ। पीके ने यह भी दोहराया कि अगर एनडीए सरकार अगले छह महीने में ऐसी महिलाओं को दो लाख रुपये दे दे, तो वह राजनीति छोड़ देंगे। इस संदर्भ में उन्होंने एक शिकायत नंबर भी जारी किया है, जिस पर लोग संपर्क कर सकेंगे।
संन्यास वाले बयान पर स्पष्टीकरण
जनसुराज में किसी पद पर न होने की वजह से प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया कि वे औपचारिक “संन्यास” नहीं ले सकते, लेकिन राजनीति छोड़ने की अपनी घोषणा पर कायम हैं। उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका पर टिप्पणी करने से इनकार किया, लेकिन यह कहा कि उनकी पार्टी ‘रेस में ही नहीं थी’, इसलिए हार की व्याख्या अलग ढंग से की जानी चाहिए।
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी पर सवाल
किशोर ने मधुबनी क्षेत्र में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को मिले मतदान पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि वहाँ पार्टी का चुनाव चिन्ह तक बड़ी संख्या में लोग नहीं जानते, फिर भी उन्हें लाख से अधिक वोट मिले, जबकि वर्षों से राजनीति कर रहे उम्मीदवारों को मुश्किल से हजार वोट मिले। उन्होंने इसे चुनावी प्रणाली पर बड़ा प्रश्न बताया।
इमरान खान का उदाहरण
प्रशांत किशोर ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भी शुरुआत में कई साल संघर्ष किया और पहली बार चुनाव लड़कर सभी सीटें हार गए थे। किशोर के मुताबिक, बिहार के पुराने नेताओं जैसी राजनीतिक ‘समझ’ उन्होंने इसलिए नहीं अपनाई क्योंकि वे भ्रष्टाचार, जातीय समीकरणों या पैसे से वोट खरीदने की राजनीति का हिस्सा नहीं बने।