बिहार में राजनीतिक रणनीतिकार से जनसेवक बने प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव जाने से पुलिस ने रोक दिया। प्रशांत किशोर अपनी टीम के साथ दलित परिवारों से मिलने जा रहे थे, जिनके बारे में उनका दावा है कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
पुलिस से बहस और सवाल
प्रशांत किशोर ने पुलिस से सवाल किया कि उन्हें क्यों रोका जा रहा है, जबकि गांव में धारा 144 लागू नहीं है। उन्होंने कहा, “यह लोकतांत्रिक देश है, किसी भी गांव में जाने और लोगों से मिलने पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए। अगर सरकार को अपने ही गांव में लोगों से मिलने देने में डर है, तो फिर पूरे बिहार के 40,000 गांवों को बंद कर देना चाहिए।”
योजनाओं की सच्चाई जानने की कोशिश
प्रशांत किशोर का मकसद था कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गांव में सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से मिलें। उन्होंने बताया कि बिहार में करीब 94 लाख गरीब परिवार हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। किशोर ने 2008 में नीतीश कुमार की घोषणा का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि सभी दलित और महादलित परिवारों को तीन लाख रुपये की जमीन दी जाएगी। प्रशांत किशोर यह जानना चाहते थे कि इस योजना का लाभ लोगों को मिला या नहीं।
भ्रष्टाचार पर सवाल
किशोर ने यह भी कहा कि वह जमीन के सर्वे और दस्तावेजी कार्य में हो रहे भ्रष्टाचार की सच्चाई जानने पहुंचे थे। उन्होंने ग्रामीणों से यह पूछने की योजना बनाई थी कि जमीन के कागज़ बनवाने और दाखिल-खारिज में अधिकारियों द्वारा पैसे मांगे जाते हैं या नहीं।
प्रशासन का पक्ष
एसडीएम नितिन वैभव काजले ने कहा कि प्रशांत किशोर बिना किसी सूचना के गांव में भीड़ जुटाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कानून-व्यवस्था को देखते हुए उन्हें अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई। प्रशासन ने बिहार शरीफ के श्रम कल्याण मैदान में सभा की अनुमति दी थी, लेकिन कल्याणबिघा गांव में भीड़ इकट्ठा करने की अनुमति नहीं है।
प्रशांत किशोर का आरोप
प्रशांत किशोर ने कहा कि सरकार सवाल पूछने से डर रही है। उन्होंने कहा, “अगर लोगों से मिलने पर रोक लगाई जा रही है, तो इसका मतलब है कि सरकार को डर है।” फिलहाल गांव में भारी पुलिस बल तैनात है और आने-जाने वालों से पूछताछ की जा रही है।