बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखा। आयोग ने कहा कि उसके पास कुछ फैसले लेने की पर्याप्त शक्तियां हैं और वह जिला स्तर पर मृत, पलायन कर चुके या अन्यत्र स्थानांतरित मतदाताओं की सूची साझा करने को तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि 19 अगस्त तक हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की पहचान और कारणों का खुलासा किया जाए तथा 22 अगस्त तक अनुपालन रिपोर्ट पेश की जाए। कोर्ट ने कहा कि जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में हटाए गए मतदाताओं का विवरण, कारण सहित प्रदर्शित किया जाए और इसे अखबार, रेडियो व टीवी के माध्यम से व्यापक रूप से प्रचारित किया जाए। जिन लोगों के नाम सूची से हटे हैं, वे आधार कार्ड के साथ दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान आयोग ने कहा कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में कोई भी निर्णय विवाद से अछूता नहीं रहता। अगर दल जीतते हैं तो ईवीएम सही, हारते हैं तो ईवीएम पर सवाल उठाते हैं। बिहार में लगभग 6.5 करोड़ मतदाताओं को एसआईआर के लिए कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने आयोग से पूछा कि मृत, पलायन कर चुके या स्थानांतरित लोगों के नाम वेबसाइट या नोटिस बोर्ड पर क्यों नहीं डाले जा सकते, ताकि प्रभावित लोग 30 दिनों के भीतर सुधारात्मक कदम उठा सकें। आयोग ने बताया कि यह सूची राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को दी जाती है, जिस पर कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकार राजनीतिक दलों पर निर्भर नहीं होने चाहिए। कोर्ट ने वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर नाम प्रदर्शित करने तथा सार्वजनिक नोटिस जारी करने पर विचार करने की सलाह दी।