राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह द्वारा लगाए गए उस आरोप पर चुनाव आयोग ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें दावा किया गया था कि प्रत्येक ईवीएम में 25 हजार वोट पहले से भरे हुए थे। आयोग ने इस आरोप को न केवल तथ्यों से परे बताया, बल्कि इसे चुनावी प्रक्रिया की मूल समझ के खिलाफ भी करार दिया।
चुनाव आयोग की ओर से जारी स्पष्टीकरण में कहा गया कि ईवीएम एक पूर्णतः ऑफलाइन उपकरण है, जिसमें न इंटरनेट, न वाई-फाई और न ही किसी तरह की बाहरी कनेक्टिविटी की सुविधा मौजूद होती है। ऐसे में किसी भी प्रकार की दूरस्थ या डिजिटल छेड़छाड़ की संभावना ही समाप्त हो जाती है।
आयोग के अनुसार, मतदान शुरू होने से पहले सभी मशीनों में शून्य वोट प्रदर्शित किए जाते हैं और उम्मीदवारों व राजनीतिक दलों के एजेंटों की उपस्थिति में अनिवार्य मॉक पोल कराया जाता है। मॉक पोल के बाद वोटों को हटाकर, सभी एजेंटों के संयुक्त हस्ताक्षर से प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। इसके अलावा ईवीएम का रैंडमाइजेशन दो चरणों में होता है—पहले जिला स्तर पर और फिर विधानसभा क्षेत्र में बूथ आवंटन के लिए—जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी यह नहीं जान पाए कि किस बूथ पर कौन-सी मशीन उपयोग होगी।
आयोग ने जानकारी दी कि मशीनों की सीलिंग से लेकर स्ट्रॉन्ग रूम में रखे जाने तक सभी प्रक्रियाओं में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं। स्ट्रॉन्ग रूम को भी दलों के हस्ताक्षर के बाद ही सील किया जाता है और यह 24×7 सीसीटीवी निगरानी में रहता है। आयोग ने आश्चर्य जताया कि राजद ने चुनाव प्रक्रिया के किसी भी चरण में टूटी सील या किसी अनियमितता की शिकायत दर्ज नहीं कराई।
ईवीएम और वीवीपैट के मेल को लेकर भी आयोग ने स्पष्ट किया कि यादृच्छिक रूप से की गई वीवीपैट पर्चियों की गिनती में किसी भी विधानसभा क्षेत्र में एक भी बेमेल नहीं मिला। वोटर द्वारा देखी जा सकने वाली वीवीपैट पर्ची स्वयं यह पुष्टि करती है कि वोट सही उम्मीदवार को गया है।
आयोग ने कहा कि राजद के एजेंटों द्वारा मॉक पोल प्रमाणपत्र, फॉर्म 17C तथा स्ट्रॉन्ग रूम सीलिंग रिकॉर्ड पर बिना किसी आपत्ति के हस्ताक्षर किए गए थे, जो अब लगाए जा रहे आरोपों का स्वयं खंडन करते हैं। आयोग का कहना है कि जगदानंद सिंह के आरोप न तो किसी दस्तावेज़ से समर्थित हैं, न किसी तथ्य से।