नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में महिलाओं और बच्चियों के लापता होने के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस साल 1 जनवरी से 15 अक्तूबर के बीच कुल 19,682 लोग लापता दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 61 प्रतिशत यानी 11,917 महिलाएं और बच्चियां हैं। इसका मतलब है कि औसतन हर दिन 41 महिलाएं या बच्चियां गुम हो रही हैं। पुरुषों की संख्या 7,765 (39 प्रतिशत) रही है।

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, लापता लोगों में से अब तक 55 प्रतिशत (10,780) को खोजा जा चुका है। इनमें 6,541 महिलाएं और 4,239 पुरुष शामिल हैं। वहीं, लापता बच्चों की संख्या 4,854 है, जो कुल मामलों का 25 प्रतिशत है, जबकि 14,828 वयस्क यानी 75 प्रतिशत लोग वयस्क श्रेणी में आते हैं।

पिछले दस वर्षों (2015–2025) के पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि इस अवधि में कुल 2.51 लाख लोग लापता हुए, जिनमें 56 प्रतिशत महिलाएं (1,42,037) और 44 प्रतिशत पुरुष (1,09,737) शामिल हैं। यानी महिलाओं का अनुपात लगातार अधिक बना हुआ है।

किशोरियों पर सबसे बड़ा खतरा

लापता बच्चों के आंकड़े बताते हैं कि 72 प्रतिशत (3,509) बच्चियां और 28 प्रतिशत (1,345) लड़के हैं। इनमें 12 से 18 वर्ष आयु वर्ग के किशोर सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। इस श्रेणी में 4,167 बच्चे लापता हुए, जिनमें से 78 प्रतिशत (3,258) बच्चियां थीं। पुलिस अब तक 68 प्रतिशत बच्चियों और 72 प्रतिशत लड़कों को खोजने में सफल रही है।

कम उम्र के बच्चों का भी चौंकाने वाला रिकॉर्ड

शून्य से आठ वर्ष के बीच 304 बच्चे लापता हुए, जिनमें 124 बच्चियां (41%) और 180 लड़के (59%) थे। इनमें से 60 प्रतिशत बच्चियां और 51 प्रतिशत लड़के बरामद किए गए।
आठ से बारह वर्ष के आयु वर्ग में 383 बच्चे लापता हुए, जिनमें 33 प्रतिशत बच्चियां और 67 प्रतिशत लड़के थे। इनमें से लगभग 74 प्रतिशत बच्चों को खोजा जा चुका है।

विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक दबाव, पारिवारिक विवाद, मानव तस्करी और ऑनलाइन प्रभाव जैसे कारण इन मामलों में तेजी से योगदान दे रहे हैं।