दिल्ली में प्रदूषण से राहत की उम्मीद में सोमवार को क्लाउड सीडिंग का पहला सफल परीक्षण किया गया। यह परीक्षण कानपुर से आए विशेष विमान की मदद से बुराड़ी और करोल बाग इलाके में किया गया। अधिकारियों के मुताबिक, यह दिल्ली सरकार की सर्दियों में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करने की व्यापक योजना का हिस्सा है।
परीक्षण के दौरान विमान से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड के सूक्ष्म कण छोड़े गए, ताकि बादलों में कृत्रिम वर्षा उत्पन्न की जा सके। हालांकि इस बार वायुमंडल में नमी 20 प्रतिशत से भी कम होने के कारण बारिश नहीं हो पाई। सामान्यतः क्लाउड सीडिंग के लिए कम से कम 50 प्रतिशत नमी आवश्यक मानी जाती है।
पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि ट्रायल के दौरान आठ अग्नि फ्लेयर्स छोड़े गए और आधे घंटे तक आसमान में प्रक्रिया जारी रही। उनके अनुसार, आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने बताया है कि क्लाउड सीडिंग के बाद 15 मिनट से लेकर चार घंटे के भीतर वर्षा हो सकती है। मंत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में राजधानी के विभिन्न इलाकों में ऐसे नौ से दस और परीक्षण किए जाएंगे।
सरकार ने इससे पहले बुराड़ी के ऊपर एक ट्रायल उड़ान भी संचालित की थी। मौसम विभाग के अनुसार, 28 से 30 अक्टूबर के बीच मौसम अनुकूल रहने पर 29 अक्टूबर को दिल्ली में पहली कृत्रिम वर्षा की संभावना है।
मंत्री सिरसा ने कहा कि क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य दिल्ली की जहरीली हवा को साफ कर नागरिकों को प्रदूषण से राहत देना है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि छठ पर्व के अवसर पर प्रदूषण नियंत्रण की यह पहल राजधानी के लोगों के लिए एक सकारात्मक शुरुआत है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम वर्षा एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है। ये रसायन बादलों में मौजूद जल वाष्प को आकर्षित कर वर्षा बूंदों में बदल देते हैं। जब बूंदें भारी हो जाती हैं, तो वे बारिश के रूप में गिरती हैं।
वायु गुणवत्ता पर प्रभाव
क्लाउड सीडिंग सीधे प्रदूषण नहीं हटाती, लेकिन बारिश के जरिए वायुमंडल में तैर रहे प्रदूषक कण नीचे गिर जाते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता में सुधार होता है। यही वजह है कि प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली के लिए यह तकनीक एक संभावित राहत का साधन मानी जा रही है।