दिल्ली के लालकिला क्षेत्र में 10 नवंबर को हुए विस्फोट के बाद कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई के बयान ने राजनीतिक बहस को गर्मा दिया है। दलवई ने सवाल उठाया कि आखिर चुनावी मौसम में ही ऐसी घटनाएं क्यों सामने आती हैं और इसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने आरएसएस पर ब्लास्ट में शामिल होने का आरोप नहीं लगाया, लेकिन यह जरूर कहा कि संगठन की कुछ विचारधाराएं उन्हें ‘आतंकी मानसिकता’ जैसी प्रतीत होती हैं।

दलवई के आरोपों से हलचल

दलवई ने कहा कि कुछ संगठन ऐसी सोच को बढ़ावा देते हैं, जो समाज में हिंसा को भड़काती है। उनका कहना था कि आरएसएस के भीतर भी ऐसे गुट हो सकते हैं जिनकी विचारधारा खतरनाक हो सकती है। स्वयंसेवकों के कंधे पर लाठी लेकर चलने की परंपरा को उन्होंने हिंसा की संस्कृति का प्रतीक बताया।

कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए दलवई ने सरकार की नीति पर भी निशाना साधा। उनका कहना था कि वहां के लोगों की आवाज़ सुनने और संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि पी. चिदंबरम के उस बयान की जांच होनी चाहिए, जिसमें इसे ‘आंतरिक आतंकवाद’ का मामला बताया गया था।

भाजपा का तीखा पलटवार

दलवई की टिप्पणी के बाद भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर कड़ा हमला बोला। पूर्व कर्नाटक मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने आरोप लगाया कि कांग्रेस अब आतंकवाद से जुड़े नैरेटिव को हवा दे रही है और आरएसएस जैसे राष्ट्रवादी संगठन को बदनाम करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे बयान समाज को बांटने वाले हैं और इनके लिए कार्रवाई की जानी चाहिए।

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने भी दलवई के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कांग्रेस से सार्वजनिक माफी की मांग की। वहीं शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह लगातार आतंकवाद के पक्ष में तर्क गढ़ने का काम करती है। उन्होंने कहा कि वोट बैंक की राजनीति में कांग्रेस की राष्ट्रीय नीति पीछे छूट गई है।

विपक्षी बयानबाज़ी से बढ़ा विवाद

आरएसएस पर टिप्पणी और धमाके को कश्मीर की स्थिति से जोड़ने के बाद यह मुद्दा और भी गर्म हो गया है। राजनीतिक दलों के तीखे बयान इस मामले को चुनावी बहस का बड़ा हिस्सा बना रहे हैं।