नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (JNUSU) चुनाव 2025 का माहौल चरम पर है। सोमवार, 27 अक्टूबर को नामांकन प्रक्रिया पूरी हो गई, जबकि चुनाव आयोग 29 अक्टूबर को उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी करेगा। इसी बीच, विश्वविद्यालय परिसर में छात्र संगठनों के बीच गठबंधन की राजनीति तेज हो गई है।

इस बार लेफ्ट संगठनों ने मिलकर महागठबंधन का गठन किया है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार से जुड़ा छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) इस गठबंधन से बाहर कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि मुस्लिम उम्मीदवार को लेकर असहमति इस दरार की मुख्य वजह बनी है।

पिछली बार की सियासी तस्वीर

अप्रैल 2025 में हुए जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में लेफ्ट खेमे में दो प्रमुख गठबंधन बने थे। AISA और DSF ने एक साथ चुनाव लड़ा था, जबकि SFI, AISF और BAPSA एक दूसरे के सहयोगी थे। वहीं, ABVP ने अकेले मैदान संभाला था।
याद दिला दें कि 2015 में AISF से चुनाव लड़कर कन्हैया कुमार ने छात्रसंघ अध्यक्ष पद जीता था। यही जीत उनकी राष्ट्रीय राजनीति का आधार बनी। बाद में उन्होंने सीपीआई और फिर कांग्रेस का दामन थामा, जहां वे अब एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रभारी हैं।

2025 में नया समीकरण

आगामी 4 नवंबर को मतदान प्रस्तावित है। इससे पहले लेफ्ट खेमे ने नया महागठबंधन बनाया है, जिसमें AISA, SFI और DSF शामिल हैं। गठबंधन ने अध्यक्ष पद के लिए AISA की अदिति, उपाध्यक्ष के लिए SFI की गोपिका, महासचिव के लिए DSF के सुनील, और संयुक्त सचिव के लिए AISA के दानिश अली को उम्मीदवार बनाया है।

हालांकि, इस बार AISF को गठबंधन में जगह नहीं मिली। सूत्रों के मुताबिक, AISF ने गठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई थी और महासचिव पद की मांग भी रखी थी, लेकिन बात नहीं बनी।

बाहर रहने की वजह क्या है?

AISF के पूर्व संयुक्त सचिव और मौजूदा उपाध्यक्ष साजिद ने बताया कि महागठबंधन की किसी भी बैठक में उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। उनके अनुसार, “लेफ्ट गठबंधन ने AISF को शामिल करने के लिए शर्त रखी थी कि पार्टी मुस्लिम उम्मीदवार को संयुक्त सचिव पद से मैदान में उतारे। हमने संगठनात्मक आधार पर उम्मीदवार तय करने का निर्णय लिया, जिसके चलते हमें बाहर कर दिया गया।”

साजिद ने कहा कि AISF का जेएनयू कैंपस में मजबूत जनाधार है और 2024 में उनकी जीत ने इसे साबित किया था। फिर भी, धार्मिक आधार पर उम्मीदवार तय करने की नीति स्वीकार्य नहीं थी।

निष्कर्ष

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 अब सिर्फ विचारधारा की लड़ाई नहीं, बल्कि गठबंधनों की जटिल राजनीति का मंच बन चुका है। लेफ्ट खेमे की एकजुटता की परीक्षा इस बार कड़ी होगी, जबकि AISF अपने दम पर मैदान में उतरकर गठबंधन को चुनौती देने की तैयारी में है।