आगरा में वायु प्रदूषण लगातार गंभीर स्तर पर बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के छह मॉनिटरिंग स्टेशनों में से तीन में हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में दर्ज की गई, जबकि स्मार्ट सिटी के सेंसर सात स्थानों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को 300 से 478 के बीच दिखा रहे हैं। दोनों एजेंसियों के आंकड़ों में दोगुने तक का अंतर सामने आने से प्रदूषण मापन की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।

शहर के कई इलाकों में निर्माण गतिविधियां प्रदूषण बढ़ाने का बड़ा कारण बन रही हैं। उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (यूपीएमआरसी) के राजामंडी और आरबीएस कॉलेज के पास बन रहे मेट्रो स्टेशनों पर धूल नियंत्रण के दावे कागजों तक सीमित नजर आ रहे हैं। राजामंडी रेलवे स्टेशन के सामने मेट्रो साइट पर मिट्टी और रेत के ढेर पड़े हैं, जिन पर पानी का छिड़काव न किए जाने से धूल का गुबार लगातार उड़ रहा है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले पखवाड़े से यहां किसी प्रकार का स्प्रिंकलिंग नहीं हुआ है, जिसके चलते पांच मिनट रुकना भी मुश्किल हो जाता है।

स्मार्ट सिटी व सीपीसीबी के आंकड़ों में बड़ा अंतर

स्मार्ट सिटी सेंसर रीडिंग (एक्यूआई):

  • टेढ़ी बगिया – 478

  • तहसील चौराहा – 346

  • बाग फरजाना – 339

  • शहीद नगर – 325

  • ईदगाह – 310

  • सदर भट्ठी – 315

  • हाथीघाट – 309

सीपीसीबी आंकड़े (एक्यूआई):

  • आवास विकास – 220

  • शाहजहां पार्क – 204

  • रोहता – 204

  • शास्त्रीपुरम – 187

  • मनोहरपुर – 169

  • संजय प्लेस – 159

संजय प्लेस में ‘बेहतर’ हवा दिखाने पर सवाल

विशेषज्ञों ने सरकारी आंकड़ों पर हैरानी जताई है। अधिकांश ट्रैफिक, मेट्रो निर्माण, व्यावसायिक गतिविधियों और कोयले के उपयोग के बावजूद संजय प्लेस की हवा को दयालबाग से बेहतर बताया गया है, जबकि दयालबाग में कम ट्रैफिक और अधिक हरियाली होने से हवा स्वाभाविक रूप से साफ मानी जाती है।

पर्यावरणविदों ने आंकड़ों की पारदर्शिता पर उठाए सवाल

याचिकाकर्ता पर्यावरणविद संजय कुलश्रेष्ठ ने कहा कि "डेटा चाहे कुछ भी दिखाए, शरीर बढ़ते प्रदूषण का प्रभाव तुरंत महसूस करता है। अधिकारियों को वास्तविक स्थिति छिपाने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में सही जानकारी देनी चाहिए।"

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. शरद गुप्ता ने भी तीन अलग-अलग एजेंसियों—स्मार्ट सिटी, यूपीपीसीबी और एएसआई—के आंकड़ों में भारी अंतर को गंभीर बताया। उन्होंने मांग की है कि ग्रैप लागू करने से पहले वास्तविक एयर क्वालिटी जनता के सामने रखी जाए, ताकि प्रदूषण नियंत्रण के सही कदम उठाए जा सकें।