चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी मोबाइल एप या ऑनलाइन पोर्टल से आए पॉप-अप संदेशों पर भरोसा कर न्यायिक आदेश पारित करना न्याय प्रणाली के लिए गंभीर चूक है। कोर्ट ने इसे अनुत्तरदायी व्यवहार बताते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह की लापरवाही लोगों की स्वतंत्रता और कानूनी अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
जस्टिस सुमित गोयल ने आदेश में कहा कि संक्षिप्त नोटिफिकेशन, कानूनी ब्लॉग या डिजिटल पोर्टल पर दिखाई देने वाली सूचनाएं आधिकारिक या विश्वसनीय कानूनी स्रोत नहीं मानी जा सकतीं। उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि अदालतों को अपने निर्णय केवल रिपोर्टेड जजमेंट, अधिकृत प्रकाशनों या प्रमाणित आदेशों पर ही आधारित करने चाहिए।
क्यों आया मामला चर्चा में?
यह टिप्पणी रामजी बनाम हरियाणा में दायर अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आई। हाई कोर्ट ने पाया कि कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 11 जून 2025 को अग्रिम जमानत खारिज करते समय एक कानूनी पोर्टल के मोबाइल एप पर आए पॉप-अप अलर्ट को आधार बना लिया था। जब हाई कोर्ट ने पूछताछ की, तो संबंधित जज ने यह स्वीकार करते हुए पॉप-अप का स्क्रीनशॉट भी भेजा कि उन्होंने उसी हेडलाइन पर भरोसा किया।
‘न सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरा पढ़ा, न मंशा समझी’
हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट के जज ने न तो सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत आदेश पढ़ा और न ही उसकी वास्तविक भावना को समझने का प्रयास किया। जस्टिस गोयल ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष भेजा जाए ताकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई पर विचार हो सके।
इसके साथ ही, हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के सभी न्यायिक अधिकारियों को डिजिटल सूचना और तकनीक के जिम्मेदार उपयोग पर विशेष प्रशिक्षण आयोजित करने का निर्देश भी दिया है।