तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ किसान आंदोलन अब भी जारी है। आज किसानों की अहम बैठक के बाद आंदोलन पर बड़ा फैसला हो सकता है। इतने लंबे चले आंदोलन में कई उतार चढ़ाव आए। कई बार आंदोलन कमजोर पड़ता दिखा तो इसके नेताओं ने फिर से आंदोलन को संभाला। जहां आंदोलन में युवाओं का जोश दिखाई दिया वहीं बुजुर्गों के फैसलों पर युवाओं का धैर्य भी आंदोलन को इतना लंबा चलाने में सहायक रहा। आंदोलन के नेताओं में मनमुटाव भी हुए लेकिन मोर्चा फिर भी डटा रहा। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 नवंबर 2020 से आंदोलन जारी है। दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन को आज 377 दिन हो आए हैं। इसमें 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान गंवाई है। हालांकि अब आंदोलन समाधान की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। जानिए आंदोलन में कब क्या हुआ

दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने से पहले ही शुरू हो गया था आंदोलन
किसानों आंदोलन की शुरुआत किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले ही तब शुरू हो गई थी, जब सरकार जून के पहले सप्ताह में कोरोना काल के बीच तीन कृषि अध्यादेश लाई। इसका विरोध विपक्षी दलों के साथ-साथ किसान संगठनों ने भी शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे पंजाब व हरियाणा में इसका विरोध तेज होता गया। पंजाब में इसके विरोध में रेल रोको आंदोलन से लेकर कई प्रकार के विरोध प्रदर्शन किए गए। किसानों ने सरकार के पूतले फूंके। अगस्त में किसानों ने जेल भरो आंदोलन किया और सैकड़ों किसानों ने गिरफ्तारियां दी। 10 अगस्त को पंजाब के किसानों ने अन्नदाता जागरण अभियान की शुरूआत की।


10 सितंबर को हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली कस्बे में दस सितंबर को किसानों ने मंडी बचाओ रैली का अल्टीमेटम दे रखा था। सरकार ने इस रैली को रोकने के लिए धारा 144 लगा दी। किसानों ने इसका विरोध किया और रैली के लिए जुटने शुरू हो गए। यहां प्रशासन ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें कई किसान घायल हुए। इसके विरोध में किसानों ने नेशनल हाईवे जाम कर दिया।किसानों के विरोध के आगे सरकार को झुकना पड़ा और रैली के लिए इजाजत देनी पड़ी। दोपहर दो बजे मंडी में रैली की शुरूआत हुई। 

कृषि बिल बने कानून, बढ़ा विरोध
14 सितंबर, 2020 को कृषि कानून बिल लोकसभा में पेश किया गया, जो 17 सितंबर, 2020 को पास हुआ। इसके बाद देशभर में किसानों के विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। 27 सितंबर 2020 को दोनों सदनों से पास बिलों पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर किए। इसके बाद आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 बने।


पंजाब के किसानों ने रेलवे ट्रैक रोके
पंजाब में किसानों ने पहले तो 24 से 26 सितंबर 2020 तक रेल रोकी उसके बाद एक अक्तूबर से कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान संगठनों ने राशन और तंबू कनात लेकर रेलवे ट्रैक, हाईवे पर डेरा डाल दिया। इसी के साथ ही किसानों ने टोल भी फ्री करवाने शुरू कर दिए और रिलायंस स्टोरों व टावरों का विरोध किया। 2 अक्तूबर से दूसरे किसान संगठनों ने देश के अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन किया। इस दौरान हरियाणा में भी कई जगह प्रदर्शन व विरोध चलते रहे। अक्तूबर में ही पंजाब और राजस्थान सरकार ने विधानसभा में कृषि कानूनों का विरोध किया।

5 नवंबर 2020: भारत बंद  
किसानों ने 5 नवंबर 2020 को भारत बंद का एलान किया। इस भारत बंद का व्यापक असर हरियाणा और पंजाब में ही देखने को मिला। इसके बाद पंजाब के किसान संगठनों ने देश के अन्य संगठनों से बातचीत करनी शुरू की और संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया। मोर्चे की पहली बैठक दिल्ली में सात नवंबर को हुई। इसमें किसानों की 9 मेंबरी कमेटी का गठन किया गया। इसके बाद दिल्ली कूच का निर्णय लिया गया।

किसानों का दिल्ली कूच का एलान 
24 नवंबर को पंजाब के संगठनों ने दिल्ली कूच की तैयारी की, उधर हरियाणा में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में किसानों ने पंजाब की जत्थेबंदियों के आगे चलने का निर्णय लिया। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, एमपी, राजस्थान से भी दिल्ली कूच किया गया। 25 नवंबर को अंबाला में हरियाणा पंजाब की सीमा पर किसानों को दिल्ली कूच से रोका गया। यहां बैरिकेडिंग की गई। बड़े-बड़े अवरोध लगाए गए। लेकिन यहां किसानों ने सभी को लांघते हुए दिल्ली की ओर कूच जारी रखा। हरियाणा में कई जगह किसानों को जबरदस्ती रोकने का प्रयास किया गया लेकिन 26 नवंबर 2020 को किसान दिल्ली की सीमाओं पर जा डटे। 27 नवंबर को गृह मंत्री ने किसानों से कहा कि वो बुराड़ी में निरंकारी मैदान चले जाएं और सरकार से वार्ता में शामिल हों लेकिन किसान नहीं माने।

सरकार के साथ हुई 11 दौर की वार्ता, कानून वापसी पर फंसा रहा पेच, किसानों ने ट्रैक्टर परेड का दिया अल्टीमेट
1 दिसंबर को सरकार के साथ दो बैठकें हुईं। केंद्र ने किसानों को बिना शर्त खुले मन से बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था। इस पर पहली बार पंजाब के 32 किसान नेताओं ने दोपहर तीन बजे केंद्र सरकार के मंत्रियों से मुलाकात की। यह मीटिंग लगभग तीन घंटे चली। केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल और पूर्व मंत्री सोम प्रकाश भी शामिल रहे। यह बैठक दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई। पहले दौर की इस बातचीत में केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित कर मामले का हल निकालने का प्रस्ताव रखा जिसे किसानों ने सिरे से नकार दिया। इसी दिन दूसरे दौर की वार्ता शाम सात बजे हुई जिसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा और अन्य राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। कृषि मंत्री ने 2 दिसंबर बुधवार को गृहमंत्री को तीसरे दौर की वार्ता की जानकारी दी।
3 दिसंबर को तीसरे दौर की वार्ता
तीसरे दौर की वार्ता में 40 किसान नेता शामिल थे। विज्ञान भवन में हुई इस बैठक में किसानों ने सरकार का दिया हुआ खाना नहीं खाया। किसानों ने अपने लिए सिंधु बॉर्डर से ही भोजन, चाय का प्रबंध किया था। यह बैठक भी बेनतीजा रही। 
5 दिसंबर को पांचवें दौर की बैठक
पांचवें दौर की इस बैठक में किसानों ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। पांच घंटे तक चली बैठक में किसानों ने प्लाकार्ड्स दिखाए और कहा कि सरकार बताए कि उसने किसानों की मांगों पर अब तक क्या निर्णय लिया।
8 दिसंबर को भारत बंद भारत बंद का आह्वान
किसानों ने भारत बंद आयोजित किया। इसका आंशिक असर रहा। पंजाब-हरियाणा में बंद का ज्यादा प्रभाव देखा गया।
10 दिसंबर को किसान आंदोलन में पोस्टर वार
मानवाधिकार दिवस के दिन किसान आंदोलन में दिल्ली दंगों के आरोपी शरजील इमाम और उमर खालिद के पोस्टर लहराए गए। उनकी रिहाई की मांग की गई। भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के इस कार्यक्रम से संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने को अलग कर लिया। संगठन ने कहा कि ये आंदोलन का हिस्सा नहीं है। इसके पहले आंदोलन में कुछ खालिस्तानी नेताओं के फोटो भी आंदोलन स्थल पर दिखाई पड़े थे।
16 दिसंबर सुप्रीम कोर्ट में रास्त बंद होने को लेकर याचिका
बॉर्डर बंद होने की वजह से यात्रियों को होने वाली परेशानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई हुई। मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी गठित करने का सुझाव दिया गया। अदालत ने किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के अधिकार को स्वीकार किया।
17 दिसंबर:
केजरीवाल ने फाड़ीं कृषि कानूनों की प्रतियां
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा के पटल पर तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ीं। विधानसभा में 'जय जवान, जय किसान' के नारे लगाए गए।
21 दिसंबर 2020
किसानों ने सभी विरोध स्थलों पर एक दिवसीय भूख हड़ताल की। इसके अलावा 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा में राजमार्गों पर टोल वसूली रोकने का एलान किया।
30 दिसंबर 2020
सरकार और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की बातचीत हुई। इसमें केंद्र ने पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश में किसानों के खिलाफ एक्शन न लेने और प्रस्तावित बिजली संशोधन कानून को लागू न करने पर सहमति जताई।
2 जनवरी 2021
 संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को अल्टीमेटम दिया कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च करेंगे।
4 जनवरी 2021 सातवें दौर की वार्ता विफल
सातवें दौर की वार्ता भी विफल रही। किसान नेता तीन कृषि कानूनों को रद्द करने पर अड़े रहे। सरकार ने इससे साफ इनकार किया। 
8 जनवरी 2021
आठवें दौर की बैठक में किसानों ने साफ कहा कि 'घर वापसी' तभी होगी, जब तीन कृषि कानून वापस ले लिए जाएं।
12 जनवरी 2021
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानून मामले पर सुनवाई करते हुए अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाई और चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इससे पहले 11 जनवरी को कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि कृषि कानूनों पर रोक आप लगाएंगे या हम। कमेटी से एक सदस्य भूपेंद्र मान ने अपना नाम वापस ले लिया था।
15 जनवरी 2021
नौवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही। प्रदर्शनकारी किसान कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की अपनी मुख्य मांग पर अड़े रहे। सरकार ने आवश्यक संशोधनों की बात कही।
 21 जनवरी 2021
10वें दौर की वार्ता में सरकार ने डेढ़ साल तक तीनों कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव रखा। साथ ही, एक संयुक्त समिति बनाने की बात कही, लेकिन यह वार्ता भी बेनतीजा रही।
22 जनवरी 2021
11वें दौर की वार्ता में किसान अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। सरकार ने सख्त रुख दिखाया। 

26 जनवरी को किसानों ने निकाली ट्रैक्टर यात्रा, लाल किला हिंसा के बाद लगा आंदोलन खत्म हो जाएगा
26 जनवरी 2021 को किसानों ने अपनी एकता का परिचय देने और देश को आंदोलन से जोड़ने के लिए दिल्ली में ट्रैक्टर रैली व झांकियां निकालने का निर्णय लिया था। लेकिन हुआ इसका उलट। कुछ किसानों ने सबसे पहले सिंघु बॉर्डर से अपना तय रूट बदल दिया। हजारों की संख्या में सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर और शाहजहांपुर बॉर्डर से ट्रैक्टरों का काफिला दिल्ली की ओर चला। सिंघु बॉर्डर के बाद टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से भी ट्रैक्टरों के कुछ गुट लाल किला की ओर रवाना होने शुरू हो गए। पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई। अधिकतर किसानों ने दिल्ली में हिंसा की खबर पर अपने ट्रैक्टर वापस मोड़ लिए। दोपहर के समय कुछ कथित किसानों ने लाल किले की प्राचीर पर एक विशेष धार्मिक झंडा फहराया। जिसके पीछे पंजाबी कलाकार दीप सिद्धू का हाथ बताया गया। राकेश टिकैत ने प्रशासन व सरकार पर आरोप लगाया कि उन्हें जानबूझकर गलत रास्ते पर चढ़ाया गया और लाल किले तक ट्रैक्टर पहुंचाए गए। टिकैत ने कहा कि सरकार ने ये सब आंदोलन को बदनाम करने के लिए किया। दिल्ली में इस दिन पथराव, लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों का प्रयोग किया गया। इस दिन दिल्ली के आईटीओ चौक पर एक किसान की मौत भी हुई। इस पूरे घटनाक्रम के बाद लगने लगा कि आंदोलन अब खत्म हो जाएगा। इस घटना की देश में भी काफी निंदा हुई।

टिकैत हुए भावुक, ट्रनिंग प्वाइंट बने आंसू
26 जनवरी को लाल किला हिंसा के बाद आंदोलनकारियों के हौसले कमजोर दिखाई दिए। बॉर्डरों से अपने आप किसान वापस जाना शुरू हो गए। यूपी प्रशासन ने गाजीपुर बॉर्डर खाली कराने की तैयारी शुरू कर दी। 28 जनवरी की रात को राकेश टिकैत भावुक हो गए और आंदोलन स्थल न छोड़कर जाने की बात कही। टिकैत ने कहा कि जब तक गांव से पानी नहीं आएगा पानी नहीं पीऊंगा। इसके बाद हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पंचायतें शुरू हो गई और रातों रात लोग बॉर्डर पर पहुंच गए। इसके बाद टिकैत आंदोलन के प्रमुख चेहरे बने। 

06 फरवरी 2021
विरोध करने वाले किसानों ने दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे तक तीन घंटे के लिए देशव्यापी 'चक्का जाम' किया।
06 मार्च 2021
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन को 100 दिन पूरे हुए। 
 

जुलाई 2021
लगभग 200 किसानों ने तीन कृषि कानूनों की निंदा करते हुए संसद भवन के पास किसान संसद के समानांतर 'मॉनसून सत्र' शुरू किया।
7 सितंबर-9 सितंबर, 2021
किसान बड़ी संख्या में करनाल पहुंचे और मिनी सचिवालय का घेराव किया।

12 अक्तूबर 2021
लखीमपुर हिंसा के बाद देशभर के किसान संगठनों ने मारे गए 4 किसानों और एक पत्रकार को श्रद्धांजलि देने के लिए शहीद दिवस का आयोजन, देश के कई राज्यों के किसान लखीमपुर के तिकुनिया पहुंचे। 

19 नवंबर, 2021
गुरु पूर्णिमा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का एलान किया।
26 नवंबर 2021
 किसान आंदोलन का एक साल पूरा हो गया। दिल्ली की सीमाओं पर सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, शाहजहांपुर और चिल्ला बॉर्डर पर पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान संगठनों ने दिल्ली कूच के बाद 26 नवंबर 2020 को डेरा डाला था।
27 नवंबर 2021
किसानों की मांगों के सामने केंद्र सरकार ने एक और कदम पीछे खींच लिया। केंद्रीय कृषि मंत्री ने एलान किया कि अब पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं रहेगा। इसके अलावा उन्होंने एमएसपी पर समिति बनाने की भी घोषणा की। 

29 नवंबर 2021-
कृषि कानून वापसी बिल संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया। 
4 दिसंबर को किसानों ने की अहम बैठक पांच सदस्यीय कमेटी बनाई।
7 दिसंबर को सरकार ने किसानों के पास भेजा प्रस्ताव। किसानों ने मांगा स्पष्टीकरण।