शिमला ग्रामीण के हलोग धामी में दिवाली के दूसरे दिन प्राचीन परंपरा के अनुसार पत्थर का खेल आयोजित किया गया। खेल का स्थान खेल का चौरा था, जहां घाटी के दोनों ओर जमोगी और कटेड़ू टोलियों के बीच करीब पौना घंटे तक पत्थरों की झड़ी लगी। इस दौरान कटेड़ू टोली के सुभाष के हाथ में पत्थर लग गया, जिसका खून परंपरा के अनुसार मां भद्रकाली के मंदिर में तिलक किया गया। खेल के दौरान ढोल-नगाड़ों की थाप पर मौजूद लोग थिरकते रहे।

राजधानी शिमला से 35 किलोमीटर दूर इस परंपरा की शुरुआत करीब चार बजे हुई। पहले दरबार से राज परिवार के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह, पुजारी तनुज और राकेश शर्मा शोभा यात्रा के साथ खेल के चौरा पहुंचे। इस यात्रा में क्षेत्र के कई स्थानीय लोग भी शामिल थे।

आयोजकों के संकेत पर झंडा फहराने के बाद जमोगी और कटेड़ू टोली के लोग पत्थर फेंकने लगे। खेल के दौरान सड़क पर वाहनों और पैदल चलने वालों की आवाजाही रोक दी गई थी। खेल के अंत में सुभाष के हाथ में पत्थर लगने पर आयोजकों ने खेल रोकने का संकेत दिया और परंपरा के अनुसार भद्रकाली मंदिर में तिलक किया गया। उसे प्राथमिक उपचार भी दिया गया।

टोलियों का विवरण:
जमोगी टोली में जनिया, जमोगी, प्लानिया, कोठी और चईंयां, ओखरू गांव के लोग शामिल होते हैं। कटेड़ू टोली में तुनड़ू, धगोई, बठमाणा और आसपास के गांवों के युवा हिस्सा लेते हैं।

इतिहास और परंपरा:
राज परिवार के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह के अनुसार, सदियों पहले यह खेल मानव बलि का विकल्प था। राज माता ने इसे सुरक्षित रूप से मनाने के लिए पत्थर के खेल में बदल दिया। चोट लगने पर निकलने वाले खून से भद्रकाली मंदिर में तिलक किया जाता है, और यह प्रथा अब भी लगातार निभाई जा रही है। कोरोना काल में भी जगदीप सिंह ने इस परंपरा को जारी रखा।

इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए हजारों लोग खेल का चौरा पहुंचे और स्थानीय संस्कृति का आनंद लिया।